रविवार, 31 अगस्त 2025

न यार मिला, न विसाले सनम…

 न यार मिला, न विसाले सनम…

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तो चीन ने पाकिस्तान को साथ देकर भारत के प्रति अपनी मंशा स्पष्ट कर ही दी थी, मोदी भी छोटी आँख वाले गणेश को याद कर चीन के प्रति सोच ज़ाहिर कई बार किया लेकिन अचानक चीन के गोद में बैठने की नीति किसी को समझ आये या ना आये जीनपिंग समझ चुका है इसलिए जब मोदी चीन पहुँचे तो….

एक तस्वीर निकलकर बाहर आई इस तस्वीर ने सब कुछ साफ़ कर दिया कि चीन के लिये भारत या मोदी के क्या मायने है , इस तस्वीर में तमाम राष्ट्रप्रमुखों की तस्वीर में मोदी सबसे किनारे खड़े है  तब यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर चीन कर क्या रहा है …

दो दिन पहले मेने लिखा था कि ट्रम्प ने टेरिफ की नाव में भारत को ब्राज़ील के साथ बैठा दिया है ! आज वैसा ही कुछ चीन ने किया। पैरों में घुंघरू बाँध बैठे मीडिया में चल रहा है कि चीन ने हमें गले लगा लिया है ( ऐसा सोशल मीडिया में चल रहा है ) मोदी के साथ पाकिस्तान के शाहबाज भी चीन पहुंचे है। उनकी अगवानी में चीन मंत्रिमंडल और प्रशासन  के पंद्रह से ज्यादा लोग मौजूद थे , मोदी को केवल तीन लोगों ने रिसीव किया उनकी हैसियत भी पार्षदों से ज्यादा की नहीं थी। दोनों को रेड कारपेट वेलकम मिला। पाकिस्तान को हमसे ज्यादा भाव मिला। 

आगे के समाचार  अंधभक्तो का दिल तोड़कर रख देंगे। 

चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत सरकार को पहले ही आगाह कर दिया था कि ' गले पड़ने ' की रस्म नहीं होगी। सिर्फ हैंड शेक हो सकता है। अपनी हद में रहो। इसलिए ' मिलनी ' की रस्म का एक भी फोटो अब तक नजर नहीं आया है।  एक वीडियो में जिनपिंग मोदी के बढ़ाये हाथ को नजरअंदाज कर आगे बढ़ते नजर आ रहे है। 

महामानव के साथ इतना बदतर व्यवहार क्यों हो रहा है ? ट्रम्प के डर से हम ' क्वाड ' में भी शामिल हो गए और पुतिन से तेल खरीदने के चक्कर में एस सी ओ ' में भी घुस गए। जबकि दोनों एक दूसरे के विपरीत ध्रुव है। बहरहाल ट्रम्प और जिनपिंग दोनों समझ गए है कि भारत की विदेश नीति की लंका इस ढुलमुल डांकापति ने लगा दी है ! इसे जिधर चाहे उधर घुमाया जा सकता है। 

चीन के साथ हमारी द्विपक्षीय वार्ता भी बे नतीजा रही है। 

चीन ने पुचकार कर कुछ ऐसी शर्ते रख दी है जिसे सुनकर मोदी के होश उड़ गए है। अब चार हजार किलोमीटर की कब्जाई जमीन को  तो भूल ही  जाओ और सिक्किम , तिब्बत  और अरुणाचल को भी अपने नक़्शे से हटाओ।

 नरेंद्र मोदी की इतनी धज्जियां डिअर फ्रेंड डोलांड ने भी नहीं उड़ाई जितनी शी जिनपिंग ने बखिया उधेड़ दी है। 

भारत एस  सी ओ  से खाली हाथ लौट रहा है। 

न ही यार मिला न विसाले सनम।(साभार)

शनिवार, 30 अगस्त 2025

मोदी से पहले कौन पहुँचा जापान…

 मोदी से पहले कौन पहुँचा जापान…

राहुल के नाम क्यों हो रहा यह पत्र वायरल…

मोदी का जापान दौरा हर बार की तरह चर्चा में है, भक्तों और गोदी मीडिया का अतिरेक यह बात आपको नहीं बताएगा कि मोदी के पहले कौन जापान पहुँचकर रंग में भंग कर दिया, लेकिन इधर भारत में राहुल गांधी को संबोधित कर लिखा गया पत्र जमकर वायरल होने लगा है…

सेवानिवृत्ति की उम्र को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत पलट गये तो इसकी वजह मोदी शाह की ताक़त है, इस दौर में गिनती के लोग हैं जो मोदी की ख़िलाफ़त करने का साहस लिए है ऐसे में इस ताकतवर मोदी के जापान पहुंचने से पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू वहां पहुंच गये और मोदी की यात्रा के मज़ा को किरकिरा कर दिया!

मोदी जी जापान गए हैं.

जापान के प्रसिद्ध लेखक पद्मश्री डॉ. तोमियों मिजोकामी ने मोदी जी से मिलने के बाद कहा ----

"जिस देश के नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू जी थे. उनके देश की संस्कृति और भाषा क्यों न सीखी जाए!"

इसलिए मैने हिंदी सीखी !

समझ रहे हैं आप.. 

नहीं समझे तो राहुल गांधी को लिखे डॉ राकेश पाठक का इस पत्र को एक बार ज़रूर पढ़ ले…

★ प्रिय राहुल गांधी, उन जैसे मत बन जाना..!

सबसे पहली बात तो ये कि आपको देश के प्रधानमंत्री के बारे में उस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जैसा आपने एक जनसभा में किया है।

आप डॉनल्ड ट्रंप के हवाले से कुछ कह रहे थे तब भी शब्दों के चयन में सतर्कता बरतना चाहिए।

व्यक्ति के तौर पर अपनी कथनी करनी से नरेंद्र मोदी भले ही सम्मान के योग्य न रहे हों लेकिन वे जिस पद पर हैं उसका मान रखना ही चाहिए। 

भले ही ख़ुद उन्होंने कभी अपने पद की गरिमा का मान नहीं रखा हो तब भी।

हां हम जानते हैं कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपकी मां के लिए 'जर्सी गाय' जैसे शब्दों का प्रयोग किया है।

★ तब भी उनका जैसे मत बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपकी मां को 'कांग्रेस की विधवा' कहा है।

★तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपकी मां के लिए बेहद अभद्र तरीके से कहा था कि 'वो चुनाव नहीं लड़ेगी भाग जाएगी।'

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

(हो सकता है आप न जानते हों... चंबल घाटी में मां का इतना अपमान होने पर तो बेटे बंदूक उठा लेते हैं।)

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी ने आपके परनाना, आपकी शहीद दादी, आपके शहीद पिता के बारे में भी निरंतर स्तरहीन, अभद्र, अशालीन, असभ्य भाषा का प्रयोग किया है।

★तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपके एक सहयोगी की दिवंगत पत्नी को 'पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड' कहा है।

तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपकी पार्टी की एक महिला सांसद की हंसी की तुलना शूर्पणखा की हंसी से की है।

★तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने एक महिला मुख्यमंत्री को सड़कछाप अंदाज़ में मंच से दीदी ओ दीदी संबोधित किया था।

★ तब भी उन जैसे मत बन जाना।

हां हम जानते हैं कि उनकी भाषा मुजरा, मंगलसूत्र, भैंस, जैसे शब्दों से सुशोभित होती है जो कि प्रधानमंत्री पद के अनुरूप कदापि नहीं होती।

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी और उनके संगठन ने आपकी चरित्र हत्या, आपकी छवि हत्या के लिए हजारों करोड़ रु खर्च करके अभियान चलाया है, आज भी चल रहा है।

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि आज़ाद भारत के इतिहास में झूठ और नफ़रत के जरिए जितना अपमान आपका और आपके परिजनों का किया गया है उतना किसी का नहीं।

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि सार्वजनिक जीवन में जो कुछ आपने सहा है उसके कारण आपके भीतर आक्रोश का लावा धधक रहा होगा जो कभी कभार बाहर आ जाता है लेकिन उसे भीतर ही रहने दीजिए। 

उसे जुबान पर मत लाइए।

वैसे भी महात्मा गांधी ने विचार और शब्द की हिंसा से भी बचने को कहा है। आपको इससे बचना चाहिए।

एक नागरिक के तौर पर हमें हक़ है कि हम आपकी इस तरह की भाषा पर आपत्ति दर्ज़ कराएं।  

ये हक़ हमें इसलिए भी है क्योंकि जब हम नरेंद्र मोदी की भाषा पर ऐतराज करते हैं तो आपको भी नहीं बख्शेंगे।

हमारा एक सवाल ये भी..

★ अगर अच्छे दिनों में नरेंद्र मोदी की बराक ओबामा से 'तू तड़ाक' में बात होती थी तो बुरे दिनों में डॉनल्ड ट्रंप 'तू तड़ाक' में धमकी नहीं दे सकते क्या?

★ नोट : राहुल को नसीहत देने वाले पहले अपने गिरेबान में झांक कर बताएं कि जब जब नरेंद्र मोदी ने स्तरहीन शब्द बोले तब वे कहां थे? 


शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

राहुल गांधी और तोता मैना…





 राहुल गांधी और तोता मैना…

आज हम तोता मैना की एक कहानी सुनाये उससे पहले बता देते हैं कि मोदी और उसकी माँ को गाली देने वाला कृषि मंत्री शिवराज सिंह का करीबी भाजपाई निकला, दरअसल ये सारा कुचक्र वोट चोरी से ध्यान भटकाने के लिए किया गया था, अब क्या अमित शाह, विष्णुदेव साय माफ़ी माँगेगे…

क्या राहुल ने गाली दी..?  क्या राहुल के सामने किसी ने गाली दी? क्या राहुल की सभा के दौरान किसी ने गाली दी?

इन सभी सवालों का जवाब है- नहीं!

लेकिन पूरी बीजेपी कह रही है, माफ़ी माँगें। ये तो खुला षडयंत्र है। सभा समाप्त होने के बाद किसी ने जाकर कुछ कह दिया। तुरंत उसका वीडियो बन गया और बीजेपी नेताओं के पास पहुँच गया...! क्या यह सामान्य है? 

बिहार में सरकार तो एनडीए की है। पता करे कि किसने गाली दी, पकड़िए. सज़ा दीजिए। प्रेस कान्फ्रेंस नहीं एफआईआर कीजिए।

वैसे अनजान आदमी की गाली के लिए अगर राहुल माफ़ी माँगें तो फिर भरी संसद में रमेश विधूड़ी की गाली के लिए कौन माफ़ी माँगेगा?

और कांग्रेस की विधवा, जर्सी गाय जैसे बदबूदार शब्द तो महामानव के मुखारबिंद से ही निकले थे। माँगेंगे माफ़ी?

सच्चाई ये है कि राहुल गाँधी की निरंतर बढ़ती लोकप्रियाता से पीेएम मोदी और बीजेपी बुरी तरह घबरा गये हैं। षड़यंत्र के अलावा कोई चारा नहीं है। पर जनता सब जानती है। इस बार बेहद महँगा पड़ेगा। और अभी तो सिर्फ़ शुरुआत है...!

लेकिन यह सब खुलकर सामने आ गया कि भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के रिजवी को सोची समझी रणनीति और साजिश के तहत कांग्रेस के मंच पर भेजा गया. रिजवी ने मंच पर मोदी की मां को गाली दी और वहां से खिसक गया. रिजवी की तस्वीर भाजपा के बड़े नेता शिवराज सिंह चौहान के साथ भी देख सकते हैं.

इसके बाद पूरे देश की गोदी मीडिया, भाजपा के आइटी सेल एवं अंधभक्तों ने पूरे देश में भौकाल मचा दिया. माहौल को गर्मा कर बिहार में विरोध के नाम पर गुंडागर्दी शुरू हो गई.पूरे प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर पर आज भाजपा के गुंडों ने हमला किया गया है.

पटना में कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय पर बिहार के एक मंत्री के नेतृत्व में हमला किये जाने की खबर है जिसमें व्यापक स्तर पर तोड़फोड़ की गई है.

भाजपा को ऐसा लगने लगा है कि बिहार में उसके खिलाफ व्यापक जन आक्रोश है और सत्ता हाथ से निकल सकती है.

इसी के मद्देनजर अपने कार्यकर्ता से गाली दिलवाकर बिहार को अराजकता में धकेला जा रहा है. इसका उद्देश्य कांग्रेस को बदनाम कर महागठबंधन को सत्ता से दूर करना है.

बिहार के मुख्यमंत्री मानसिक रूप से बीमार हैं. सत्ता का संचालन नेताओं एवं नौकरशाहों के एक गिरोह के द्वारा किया जा रहा है जो भाजपा के एजेंट के रूप में काम कर रहा है. इस स्थिति में चुनाव तक बिहार को लगातार अराजक स्थिति में चुनावी फायदे के लिए धकेला जायेगा.

तब ऐसे में तोता मैना की यह कहानी ज़रूर पढ़नी चाहिए…

तोता और मैना जब एक उजड़ी हुई वीरान बस्ती से गुजर रहे थे तो मैना ने कहा : " किस क़दर वीरान बस्ती है ?

तोता बोला :" लगता है जैसे यहाँ से किसी उल्लू का गुजर हुआ है , जिस वक़्त तोता और मैना में ये बातें हो रही थी उसी समय एक उल्लू भी उधर से जा रहा था , उसने तोते की बात सुनी और उससे मुखातिब हो कर कहा कि तुम लोग इस बस्ती में  मुसाफिर लगते हो , आज रात मेरी मेहमान नवाजी क़ुबूल करो और साथ खाना खाओ ।

उल्लू की मोहब्बत भरी दावत से तोता और मैना का जोड़ा इंकार न कर सका और उन्होनें दावत क़ुबूल कर ली , खाना खाकर जब उन्होने रुख्सत होने की इजाजत चाही तो उल्लू ने मैना का हाथ पकड़ लिया और कहा :" तुम कहाँ जा रही हो ?

मैना परेशान होकर बोली ...ये भी कोई पूंछने की बात है ? मैं अपने हस्बेंड के साथ जा रही हूँ । उल्लू यह सुनकर हंसा और कहा : ये तुम क्या कह रही हो तुम तो मेरी वाइफ हो । उल्लू की ये बात सुनकर तोता और मैना दोनों उल्लू पर झपट पड़े और झगड़ा शुरू हो गया ।

जब बहस और तकरार हद से ज्यादा बढ गई तो उल्लू ने एक सलाह दी और कहा कि हम तीनों अदालत चलते हैं और जज के सामने अपना मामला रखते हैं , जज जो फैसला करेगा वह हमें मंजूर होगा । उल्लू की तरकीब पर तीनों अदालत में पैश हुए , जज ने दलीलों और सबूतों के आधार पर उल्लू के हक़ में फैसला सुनाया और अदालत बर्खास्त कर दी ।

तोता इस बे इंसाफी पर रोता हुआ जा रहा था तभी पीछे से उल्लू ने आवाज लगाई "भाई अकेले कहाँ जा रहे हो अपनी बीवी को तो साथ लेते जाओ " तोते ने हैरानी से उल्लू की तरफ देखा और कहा : ये अब मेरी बीवी कहाँ है अदालत ने तो इसे तुम्हारी बीवी क़रार दिया है ?


नही दोस्त । मैना तुम्हारी ही बीवी है , बस मैं तुम्हे ये बताना चाहता था कि बस्तियां उल्लू वीरान नही करते , बस्तियाँ तब वीरान होती है जब उन मे से इंसाफ खत्म हो जाता है ।(साभार)


गुरुवार, 28 अगस्त 2025

विपुल पांचोली और न्यायिक विश्वसनीयता…

 विपुल पांचोली और न्यायिक विश्वसनीयता…


सारी संस्थाओं को मुट्ठी में रखने की कोशिश का मतलब ही तानाशाही होता है, यदि सब कुछ सरकार के इशारे पर चले तो आपातकाल की घोषणा की जाय या नहीं कोई मायने नहीं रखता, तब संसद में आवाज़ भी नक्कार खाने की तूती की तरह हो गई है, संवैधानिक संस्थान ही नहीं देश के संसाधनों पर भी मित्रों के ज़रिये क़ब्ज़ा क्या तानाशाह नहीं है, लेकिन आज बात जस्टिस नागरत्ना की हिम्मत और गवई की लाचारी…

राहुल गांधी के दो साल सजा को बरकरार रखने वाले  जस्टिस विपुल पंचोली बने सुप्रीम कोर्ट में जज..!!

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विपुल पंचोली के विवादास्पद क्रेडिबिलिटी के कारण उन्हें गुजरात से बिहार के पटना हाईकोर्ट में ट्रान्सफर किया गया था। किन्तु पिछले महीने 21जुलाई को वहां का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया,

और अब जस्ट एक ही महीने में आज उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया है।

इनके नियुक्ति, न्यायिक इंटीग्रिटी, संवैधानिक एवं विधिक योग्यता पर मीडिया एवं सिविल सोसायटी में सवाल खड़े किए गए हैं।

इस मुद्दे पर 'कैम्पेन फॉर जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स'  नामक संस्था ने भी बयान जारी किया।

सीजेएआर ने कहा- सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों के कोलेजियम में जस्टिस पंचोली की नियुक्ति 4-1 के बहुमत से हुई, 

क्योंकि जस्टिस नागरत्ना ने असहमति जताई। और कहा कि इस नियुक्ति से न्याय प्रशासन एवं कोलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा।

सीजेएआर के मुताबिक जस्टिस पंचोली गुजरात से सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले तीसरे जज हैं, जो गुजरात हाईकोर्ट के आकार की तुलना में असंतुलित प्रतिनिधित्व है। 

साथ ही वे हाईकोर्ट जजों की ऑल इंडिया सीनियरिटी लिस्ट में 57वें नंबर पर हैं।

पर अब इनसे 57 सीनियर जजों को दरकिनार करते हुए इन्हें जज बना दिया गया है। और 2031 में यही महान न्यायमूर्ति हमारे देश के मुख्य न्यायाधीश भी बनेंगे।

यह नियुक्ति जिस सीजेआई द्वारा की गई है वह बाबा साहब डॉ अम्बेडकर को अपना आदर्श मानते हैं, बौद्ध एवं दलित हैं। जिस सिस्टम में की गई है वह कोलेजियम है, जो पूर्ण स्वायत्त है। 

इसलिए सरकारी हस्तक्षेप के आरोप से मोदी सरकार टेक्निकली पूरी तरह बरी एवं फ्री है।(साभार)


Vishwajit Singh

बुधवार, 27 अगस्त 2025

अमेरिकी दादागिरी की असली वजह क्या अदानी से जुड़ा है

 अमेरिकी दादागिरी की असली  वजह क्या अदानी से जुड़ा है…


मोदी सत्ता भी ग़ज़ब है कल तक नियम क़ानून को ताक पर रखकर अंबानी बंधुओं की मदद करते नहीं थकती थी , वह आज उन्हें जाँच एजेंसियों से डराने लगी है, इस छापेमारी को तो लोग जगदीप धनखड़ के इस्तीफ़े और तख्ता पलट की क़वायद से भी जोड़ रहे हैं तब अमेरिकी टैरिफ़ को लेकर चल रही लड़ाई क्या मोदी अदानी का कोई खेल है जिसका भारत को नुक़सान उठाना पड़ रहा है…

अमेरिकी टैरिफ़ का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह सब बताये उससे पहले बता देते हैं कि मोदी ने कभी दावा किया था कि ट्रंप उनके सबसे अच्छे मित्र है और सिर्फ़ दावा नहीं बल्कि उन्हें जीताने ज़मीन आसमान छान दिया था, 

ऐसे में अचानक यह सब क्या हो गया, कहा जाता है कि ट्रंप और अदानी के कुछ व्यापारिक ख़ून्नास या धोखाधड़ी का मामला है, तो क्या अदाणी ने ट्रंप के साथ चिटिंग की, 

ट्रंप के द्वारा अंबानी को तवज्जो देने की यही वजह बताई जा रही है तब अंबानी का धनखड़ के साथ खेल के पीछे क्या ट्रंप है और अब अंबानी धनखड़ के साथ निशाने पर है

यह सब चलता रहेगा तब अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ आज (बुधवार) से प्रभावी हो जाएगा। इस कदम का सीधा असर भारत के परिधान, टेक्सटाइल, रत्न-आभूषण, लैदर, कालीन और फर्नीचर जैसे श्रम आधारित उद्योगों पर पड़ेगा । 

अमेरिकी प्रशासन द्वारा इसे पहले जुलाई 2025 में 25 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया गया था। इसके बाद अब दूसरी बार 27 अगस्त 2025 लगाया जा रहा है। अमेरिका का कहना है कि भारत रूस से लगातार तेल की खरीद कर रहा है जिससे रूस यूक्रेन  युद्ध में रूस को आर्थिक मजबूती मिल रही है इसलिए यह टैरिफ रूस यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए जरूरी है जिस कारण से यह नया टैरिफ लगाया गया है।

इसके जवाब में गुजरात में प्रधानमंत्री ने एक रैली में अपने भाषण में अमेरिका और ट्रंप का नाम लिए बिना जो  कहा उसके कुछ अंश  

"दुनिया में आर्थिक स्वार्थ वाली राजनीति, सब कोई अपना करने में लगा है, उसे हम भलीभांति देख रहे है और में गांधी की धरती से बोल रहा हूं, दबाव कितना भी आए हम झेलने की अपनी ताकत बढ़ाते जाएंगे"

हालांकि एक तरफ आत्मनिर्भरता के दावे किए  जा रहे है और दूसरी तरफ दबाव को झेलते जाने के भाषण में शब्द एक विरोधाभास है आत्मनिर्भरता के प्रयास के तहत आज भारत में स्वदेशी निर्मित पहली मारुति इलेक्ट्रिक कार को हरी झंडी दिखाई गई यह एक कदम जरूर है लेकिन क्या यह पर्याप्त है जबकि अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया जाता है और बहुत बड़ी जनसंख्या वाले देश में मात्र कुछ फीसद लोग ही महंगी कार को खरीद सकते है ।

भारत को इस वैश्विक व्यापार असंतुलन के दौर में अन्य विकल्पों की तलाश कर अमेरिका की इस व्यापारिक आर्थिक दादागिरी को जवाब देना चाहिए साथ ही ऑपरेशन सिंदूर भारत पाक युद्ध सीजफायर के ट्रंप के दावे को स्पष्ट भाषा में जवाब देना चाहिए ताकि भारत की प्रभुसता अक्षुण्ण रहे । 140 करोड़ नागरिक और भारतीय संसद व्यापारिक और रणनीतिक मामलों में स्वयं निर्णय लेता है और किसी भी अन्य राष्ट्र की दखल को मंजूर नहीं करेगा । भारतीय लोकतंत्र संविधान निश्चित ही असंख्य संघर्षों बलिदानों से अर्जित किया गया है । इसके मूल्यों और संप्रभुता की रक्षा करना हर देशवासी नेता, प्रशासनिक अधिकारी  या नागरिक सबका फर्ज है । भले ही भारत को टैरिफ या सीजफायर के बयान या दबाव से ट्रंप कमजोर करने की कोशिश में है लेकिन भारत एक संप्रभु,लोकतांत्रिक गणराज्य है और गणतांत्रिक राष्ट्र रहेगा यह दुनिया जान ले ।

इसके साथ ही भारत को अपनी विदेश नीति और व्यापार नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है क्योंकि अमेरिका इस द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध में अधिक झुकाव अपनी तरफ चाह रहा है इसके साथ ही ट्रंप के लिए किए गए प्रधानमंत्री मोदी के पूर्व चुनावी दावे और करोड़ों रुपयों के आयोजनों पर भी पुनर्विचार करना चाहिए । और व्यापारिक और रणनीतिक मामलों में नए विकल्पों को तलाशना चाहिए । आत्मनिर्भरता की सिर्फ नारेबाजी से नहीं जमीनी स्तर पर शोध और विकास के साथ कृषि, व्यापार, विज्ञान तकनीकी के साथ मानव संसाधन का सकारात्मक उपयोग कर नए रोजगार सृजन, शिक्षा स्वास्थ्य, सड़क, और  निर्माण क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए नए आयाम तलाश कर आर्थिक मजबूती की तरफ कदम बढ़ाने चाहिए ।(साभार)

सोमवार, 25 अगस्त 2025

पीएम केयर फंड पर उठते सवाल..

 पीएम केयर फंड पर उठते सवाल…


मोदी सत्ता के दौर में देश के प्रधानमंत्री का डिग्री को लेकर उठते सवालों के बीच पीएम केयर फंड को लेकर भी सवाल उठने लगे है, ग़ज़ब पीएम का अज़ब खेल की तर्ज़ पर चल रहे खेला का मतलब सरल भाषा में समझिए…

पीएम केयर फंड को लेकर उठते सवाल के बारे में बताये उससे पहले बता देते हैं कि बहुत सारे लोग सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं कि कब तक बचोगे? जब भी दूसरी सरकार बनेगी, डिग्री सार्वजनिक हो जाएगा। पर ऐसे लोग भूल रहे हैं कि शॉर्ट सर्किट से लगी आग,.. पानी में गल जाने...या चूहों के कतरने से कैसे रोक पाओगे?

 याद है न ! यही सरकार है ,जो सुप्रीम कोर्ट में बता चुकी है कि राफेल सौदे की फाइल चोरी हो गई है।

खैर, वर्तमान में हमारी देश की न्यायपालिका, विधायिका ,कार्यपालिका तीनों की लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता स्टेक पर है...!!

या सबसे बड़ा सवाल तो उस पीएम केयर फंड का है जिसे प्रचारित इस ढंग से किया गया मानो यह सरकारी हो ।लेकिन यह भ्रम भी अच्छे दिन की तरह टूट गया क्यों कि सरकार की निगाह में चुनावी नतीजे सरकार की नीतियों का जनता द्वारा अनुमोदन है। सरकार ने 24-03-2020 को लाॅक डाऊन कर दिया और 27-03-2020 प्रधान मंत्री जी ने टीवी पर आकर "पीएम केयर्स फंड" की घोषणा कर दी। इसे कहतें "आपदा में अवसर" आपदा तो जनता के लिए थी पर गुजरात के व्यापारी (डीएनए) ने उसमें मौका तलाश कर लिया। लोगों ने समझा कि शायद यह प्रधान मंत्री जी का जनता की केयर करने के लिए सरकारी फंड है। जबकि प्रधान मंत्री आपदा फंड और प्रधान मंत्री रीलीफ़ फंड पहले से ही मौजूद था। इस नये फंड का औचित्य समझ से बाहर था। लेकिन कहा गया है कि आपातकाल में लोगों की सोचने की शक्ति क्षीण हो जाती है। लोगों ने सरकार के कहने पर अपने वेतन का भी अंशदान किया। बहुत से लोगों ने अपनी पेट काट कर की बचत भी इस फंड में डाल दी ताकि प्रधान सेवक ग़रीब जनता के लिए फंड से मदद मुहैय्या करवा सकें।

लेकिन जब इस फंड के एकाउंट के बारे में पूछताछ की तो सरकार ने कहा," यह सूचना के अधिकार-2005 के दायरे से बाहर है। इसलिए कोई जानकारी देने की ज़रूरत नहीं है।

लेकिन लोग कहां मानते है वह सुप्रीम कोर्ट चले गए।  अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा,"यह कोई सरकारी फंड है ही नहीं। यह तो प्राइवेट फंड है।" हम तो समझ रहे थे कि जिस फंड के ट्रस्टी प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री वित्त मंत्री और पीएमओ है और वह सरकारी चिन्ह इस्तेमाल कर रहें हैं वो प्राइवेट कैसे हो सकता है। लेकिन सरकार तो भी सरकार है, वो भी विश्व गुरू की वो कहां जवाब देती है।

पता लगा कि वर्ष 2021 के बाद इस फंड का ऑडिट तक नहीं हुआ। जो थोड़ा-बहुत एक-डेढ़ पेज के ऑडिट से पता लगा कि इस फंड से वेंटिलेटर खरीदे गए थे। कहां से, किस के लिए और कैसे खरीदे गए यह गोपनीय सूचना है। यह भी पक्के तौर पर पता नहीं है कि इस फंड में कितना पैसा है और किसने जमा किया है। यह भी किसी को नहीं पता। उड़ती खबर है कि इसमें बीस हजार करोड़ रुपए जमा हैं।

खैर साधारण आदमी होता तो सारी जांच एजेंसियाँ लग गई होती पीछे टीवी कैमरों समेत, सूत्रों से जानकारियां टीवी पर मिलती और गिरफ्तारियां हो जाती लेकिन सरकार के कामकाज पर कौन सवाल उठा सकता है। प्रधान मंत्री की केयर देखभाल करने के लिए यह प्राइवेट फंड है।

वैसे बदले हालात में जब विपक्ष मजबूत है और सरकार बहुमत के आंकड़े से दूर तो इस पीएम फंड की भी कुछ सुधि यानी केयर होनी चाहिए। पता तो लगे पीएम की कौन-कौन केयर कर रहा था और फंड किसकी केयर में लगा था।(साभार)

रविवार, 24 अगस्त 2025

संघ के फिर एक झूठ का पर्दाफ़ाश…

 संघ के फिर एक झूठ का पर्दाफ़ाश…


कभी सुभाष बाबू तो कभी सरदार पटेल, कभी भगत सिंह तो कभी शास्त्री को लेकर अफ़वाह उड़ाने वाली दुनिया की इस सांस्कृतिक संगठन को प्रधानमंत्री मोदी ने तो उसी दिन घुटने पर ला दिया था जब उनके चेले नड्डा ने कहा था कि बीजेपी को अब संघ की ज़रूरत नहीं है लेकिन संघ और समूची बीजेपी के झूठ की परते उधड़ने लगी है और अब इंदिरा को लेकर करपात्री महाराज के श्राप को लेकर फैलाए झूठ का सच भी सामने आने लगा है…


ये वही करपात्री महाराज हैं जिनके लिए भाजपाई ये कहते नहीं अगाहते कि इन्होंने इंदिरा जी को श्राप दिया था।

दरअसल, ये भी उनके प्रोपोगंडा का हिस्सा हुआ। करपात्री जी द्वारा जिस तिथि और साल की ये घटना बताई जाती है उसके अगले साल करपात्री जी ने ये किताब लिखी। 



इसमें उन्होंने गोलवलकर की वी एंड अवर नेशनहुड डिफाइंड और बंच ऑफ थॉट की समीक्षा की है। इसके अलावा उन्होंने rss के साथ अपने काम के अनुभव को भी बताया है। उन्होंने इसमें rss को जितना कोसा है उतना उस समय में नेहरू जी या इंदिरा जी ने भी नहीं कोसा होगा। 

इसमें उन्होंने rss के हर प्रोपोगंडा को उधेड़ कर रख दिया जो जनसंघ और उसके बाद अब भाजपा चला रही है। उन्होंने rss के दोहरे चरित्र की जिस तरह से व्याख्या की है वो वाकई आंख खोलने वाली है। उन्होंने rss के राष्ट्रवाद के एजेंडे को हिदुओं को पतन की ओर ले जाने का मार्ग बताया। उसका एक अंश यहां दिया है। शास्त्रों के माध्यम से उन्हें Rss और उसके हिंदुत्व के एजेंडे की जो धज्जियां उन्होंने उड़ाई है वो अद्भुत है। (साभार)

शनिवार, 23 अगस्त 2025

गोदी मीडिया क्यों कहलाता है सच आ गया सामने, सुनकर चौंक जाएँगे…

 गोदी मीडिया क्यों कहलाता है सच  आ गया सामने, सुनकर चौंक जाएँगे…


मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मुख्य धारा की मीडिया क्यों गोदी मीडिया कहलाने लगी। क्या सिर्फ़ इसलिए कि यह नाम रवीश कुमार ने दिया या फिर इसकी कोई और वजह भी है, आख़िर गोदी मीडिया क्यों कहा जाता है , इसे ऐसे समझे….

गौर से देखिए ...... प्रधानमंत्री मोदी जी के सामने हाथ जोड़े, खींसे नूपुर रहे यह लोग कथित तौर पर देश के जाने माने पत्रकार हैं। अब आप ही बताएं क्या इन लोगों में इतना नैतिक साहस है कि यह सरकार या सत्ता से कोई सवाल कर सकें ??? तो क्या इसीलिए इनको गोदी मीडिया कहा जाता है। 

यही लोग 2014 के पहले सरकार से बढ़चढ़ कर सवाल करते थे क्योंकि तब मनमाफिक सरकार नहीं थी। जो सरकार थी वह धार्मिक नफरत फैलाने के इनके एजेंडे को सपोर्ट नहीं करती थी। दरअसल मीडिया के एक बड़े वर्ग पर क़ब्ज़ा की कोशिश उस दिन शुरू हो गया था जब विहीप के आसरे साधु संतों पर क़ब्ज़ा होने लगा था , फिर इन्ही साधु संतों के आसरे मीडिया में काम करने वालो पर क़ब्ज़ा की कोशिश हुई, चूँकि देश के बड़े मीडिया हाउस पर बनियों का कब्जा है। और बनिया और ठाकुर शुरुआत से ही संघ की विचारधारा का समर्थक रहा है, इस वर्ग ने विपरीत परिस्थितियों में भी भाजपा और संघ का साथ दिया है। जबकि ब्राह्मण का एक बड़ा तबका  कभी कांग्रेसी कभी समाजवादी तो कभी बसपाई हुआ है। 

इस गठजोड़ ने ही इंदिरा के खिलाफ वैचारिक रूप से एक दूसरे के विरोधी रहे कम्युनिस्टों, समाजवादियों और संघीयों को एकजुट किया था। इसी गठजोड़ ने वीपी सिंह के बोफोर्स वाले झूठ को सच बताया। इसी गठजोड़ ने मायावती को सीएम बनाया। इसी गठजोड़ ने हिंदू हृदय सम्राट कल्याण सिंह, आडवाणी, तोगड़िया, जसवंत सिंह आदि को ढक्कन किया। इसी गठजोड़ ने देश में हिंदू मुस्लिम का नारेटिव खड़ा किया। 

इसी गठजोड़ ने आजादी के पहले द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन और समर्थन किया।यही गठजोड़ आपको बताता है कि राहुल गांधी के पिता पारसी नहीं मुसलमान थे और स्मृति ईरानी पारसी नहीं हिंदू हैं। यह गठजोड़ भगत सिंह को तिलकधारी और चंद्रशेखर आजाद को जनेऊधारी दिखाता है। यह गठजोड़ आपको नफरत करना सिखाता है और यही आपको "हिंदुत्व" के नाम पर गरीब, पिछड़ा और दलित बनाए रखना चाहता है। यही आपको कट्टर हिंदू और मुझे गद्दार मुसलमान बना रहा है ताकि सत्ता, संसाधनों और संस्थानों पर उसकी पकड़ बरकार रहे। 

एक बार फिर गौर से देखिए इन कथित पत्रकारों को। इनके चेहरे पर खिल रही मुस्कान उस युद्ध में विजय की परिणीति है जो आज से 100 साल पहले गुरु गोलवलकर ने शुरू किया था। इस विजय में इनका भी जबरदस्त योगदान है। चाहे वह मंदिर आंदोलन हो या अन्ना का धरना। यही पत्रकार स्वयंसेवक बनकर नैरेटिव बनाने में जुटे थे। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें बेहद समर्पण, लगन, एकजुटता की जरूरत थी। देश में एक नैरेटिव खड़ा करना था कि विभाजन के लिए दक्षिणपंथ की विचारधारा के कांग्रेस जिम्मेदार है। गांधी जी की हत्या को "वध" बता कर गोडसे को पीड़ित दिखाना था, सावरकर को वीर साबित करना था, नेहरू को अय्याश बताना था, पटेल, सुभाष, से मतभेदों के बावजूद उनको अपना हीरो दिखाना था, मुसलमानों को विलेन और मुसलमानों को अधिकार को तुष्टिकरण कहना था। इतिहास को सिर के बल खड़ा करना था। जातीय भेदभाव को कम करके आंकना था। इस युद्ध में देश की जनता के सिर से धार्मिक सद्भाव का भूत उतार कर उसे हिंदू योद्धा बनाना था। 

यह युद्ध बहुत लंबा चलना था लेकिन विश्वास था कि एक दिन भ्रष्ट सरकारों से ऊबी जनता इन बातों पर विश्वास कर लेगी और अंततः यही हुआ। आज इनकी मेहनत रंग लाई है और यही इनके मुस्कुराने की वजह है। यह हाथ जोड़े खड़े हैं अपने आराध्य के सामने जिसने इस युद्ध का नेतृत्व करके इन्हें विजय दिलाई। इसीलिए मोदी जी भगवान हैं और गोदी  मीडिया भक्त और अपने आराध्य के सामने ऐसे ही हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए खड़ा हुआ जाता है। सवाल पूछने की धृष्टता करने वाला यूट्यूबर कहलाता है।(साभार)

शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

ये लोग आते कहाँ से हैं…

 ये लोग आते कहाँ से हैं…


एमपी के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने वैसे तो कुछ भी अलग नहीं कहा, नाम बदलनेवाला संस्कार आरएसएस से लिए लोगों से और कोई उम्मीद करनी भी नहीं चाहिये हालाँकि अभी तो और भी मुग़ल और अंग्रेज़ी नाम की फ़ेहरिस्त है जिसे बदले जाने का संस्कार बाक़ी है लेकिन मोहन यादव नाम बदलने के फेर में ये भूल गये कि प्रभु कृष्ण का यह नाम भारतीय जनमानस में भीतर तक बैठा है…

मध्यप्रप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को शायद यह बात मालूम नहीं है कि उनके इस अभियान से वो भजन झूठा पड़ जाएगा

"मैया मोरी मैं नहीं माखन खाओ"

इसकी पंक्तियां बदलेगी अगले चरण में मोहन सरकार। वो क्या होगी अभी राय शुमारी की जाएगी भक्त मंडल से फ़िर तय  किया जाएगा। 

एक फिल्मी गाना है "मच गया शोर सारी नगरी रे आया बिरज का बांका सम्हाल तेरी गगरी रे।" इस गाने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा, इंटरनेट से इसे हटाने का आदेश दिया जाएगा।

भक्ति कालीन कवियों जैसे सूरदास, रसखान, मीरा आदि के भजनों की समीक्षा की जाएगी जिसके लिए एक कमेटी बनाई जाएगी। वाट्सअप यूनिवर्सिटी से Phd योग्यता प्राप्त विशेषज्ञों की भर्ती की जाएगी इस कमेटी के लिए।

सबसे बड़ा सवाल यह आएगा कि माखन का आविष्कार ही श्री कृष्ण के कारण हुआ है। इसके पहले किसी ग्रन्थ या पुराण में उल्लेख नहीं मिलता माखन का। अब अगर कृष्ण जी माखन चोर नहीं हैं तो इसे खायेगा कौन? भगवान श्री कृष्ण ने जब भी माखन खाया चुराकर ही खाया, चाहे वह मां यशोदा से हो या गोपियों की मटकी से। यह अलग बात है कि मथुरा जाने के बाद उन्होंने बंसी और माखन दोनों का त्याग कर दिया था। 

पता नहीं सरकारें किस प्रकार से ऐसे निर्णय लेती है जिससे इतिहास बदलने की आवश्यकता पड़ जाती है। अब कोई वामपंथी यह न कह दे कि कृष्ण ने माखन के माध्यम से, गरीब गुरबे को वो वस्तु जो साधारण तो हो लेकिन आसानी से उपलब्ध न हो, उसे चुराकर उपयोग करने की सीख दी है। इसलिए सरकार उन्हें माखन चोर कहने से बचना चाहती है ताकि जनता उनके बताए रस्ते पर न चले। एक जातिवादी भाई यह कह रहे थे कि भगवान कृष्ण यादव कुल दीपक हैं इसलिए उन्हें सरकार माखन चोर की पदवी से हटाना चाहती है। अगर वहीं भगवान ब्राह्मण या क्षत्रिय होते तो ऐसा कदम नहीं उठाती। इस खबर के सामने आने से जितने मुँह उतनी बातें सुनाई पड़ रही हैं।

इसी माखन की चोरी के बाद माता यशोदा ने भगवान के मुख में त्रिलोक दर्शन किए थे  सरकार इसीलिए तो नहीं डर रही है कि वोट चोरी मामले में केचुआ का मुँह खोल कर विपक्ष सारा कुछ साफ़ साफ़ देख न ले।

बड़ी विकट विपदा है सरकारें धर्म में घुस रही हैं और धर्माचार्य सरकार में। वो अपनी गद्दी से राजनीतिक जुमले उछालते हैं तो सरकारें भी क्यों पीछे रहे। मंदिर मस्जिद के अलावा भक्तों की भावनाओं को हवा देने का काम इनके विधायक मंत्री भी बेहतर तरीके से अंजाम दे सकते हैं।

मोहन सरकार का यह कदम निश्चित ही स्वागतेय है। इस आंदोलन को पूरा करने के बाद इन्हें भगवान राम के लिए भी कोई योजना बनानी चाहिए। जैसे भगवान राम ने सीता की अग्नि परीक्षा नहीं ली थी। या फ़िर रावण ने सीता हरण नहीं किया था। या फ़िर हनुमान कनिष्क के नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में मिले थे। ऐसे कई विषय हो सकते हैं। 

सरकारें चाहें तो बुद्ध, नानक, महावीर, आदि पर भी शोध कर इस तरह के प्रयास कर सकती है। हर अवतार हर भगवान के साथ कुछ न कुछ ऐसी बात या घटना जुड़ी है जिसे उठाकर सरकारें अपने आप को सुरक्षित रखने और जनता को उलझाए रखने का काम कर सकती हैं। फ़िर उनकी आईटी सेल को इससे रोज़गार भी मिल जाता है। 

मोहन सरकार को इस अनोखे विषय पर चिंतन करने और संवेदन शीलता दिखने के लिए किसी श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए।(साभार)

गुरुवार, 21 अगस्त 2025

भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ क्यों..

 भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ क्यों..

इसे एकदम सरल भाषा में समझिये…


यह बात आपको कोई बड़ा मीडिया नहीं बताएगा कि ORF यानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेंशन क्या है और न ही ये बात कोई बताएगा कि ट्रंप ने रुस से तेल ख़रीदने पर भारत पर चीन से ज़्यादा टैरिफ़ क्यों लगा रहा है…

अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने बताया कि भारत पर क्यों लगाया गया 50% टैरिफ.....!! उन्होंने कहा कि भारत रूस के सस्ते तेल खरीदकर 16 बिलियन से ज्यादा मुनाफा कमा चुका है. इसमें कुछ भारत के अमीर परिवार हैं।बेसेन्ट ने आगे कहा कि भारत का रूसी तेल आयात पहले 1% से भी कम था और अब यह 42% तक पहुंच गया है।

उन्होंने कहा, " जबकि चीन का अलग मामला है। क्योंकि रूस की ओर से यूक्रेन पर किए गए हमले से पहले चीन अपनी जरूरत का 13 फीसदी तेल रूस से खरीद रहा था और अब 16 फीसदी तेल खरीद रहा है। साथ ही बीजिंग का तेल आयात अलग-अलग स्थानों से है इसलिए उनकी स्थिति अलग है."

 रूस से तेल खरीदने को लेकर ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है तो वहीं चीन पर 30 फीसदी टैरिफ ही है।

अब इसे समझना जरूरी है, यदि भारत सरकार इस तेल को रूस से सस्ते दाम में खरीदता तो भारत की जनता को लाभ मिलता।

पर ऐसा नहीं हो रहा है।

क्योंकि ये तेल रूस से अंबानी की कंपनी रिलायंस और नायरा खरीदती है और फिर उसे 45% जैसे भारी भरकम मुनाफा लेकर अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में बेचती है।

राहुल गांधी भी देश की जनता को इसी मिलीभगत को बता रहे हैं कि मोदी देश के लिए नही अपने दोनों आकाओं अदानी, अंबानी की नौकरी, प्रॉफिट में देश के भविष्य को विगत ग्यारह वर्षों से दांव पर लगा रहे हैं।

तब ओआरएफ़ को भी ऐसे समझिए…

2011 के बाद की बात है। उस वक्त मैं सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस अकाउंटेबिलिटी नाम की एक संस्था में बजट एनालिसिस का काम करता था। 

CBGA को फोर्ड फाउंडेशन का सपोर्ट था। 

हम गरीबों और वंचितों के लिए सरकारी बजट में आबंटन पर नजर रखते और सरकार से ज्यादा राशि देने की मांग करते। 

इसके पीछे हमारे पास बदहाली का पूरा रिसर्च डेटा होता और तब के प्लानिंग कमीशन को हमारी बात माननी पड़ती। 

खैर, वह "आजादी" से पहले की बात थी। अब मोदी के कुल 5 कॉरपोरेट मित्रो का राज है। 

इनमें दो को सभी जानते हैं–अंबानी और अदानी। 

आपको पता नहीं होगा कि पिछले 11 साल से यही दोनों भारत की संसद को चलाते हैं। 

ज्यादा पुरानी नहीं, 2024 की बात है, जब संसद ने ऑयल फील्ड्स बिल पास करवाया। 

मकसद था, पेट्रोलियम क्षेत्र में बड़ी कंपनियों को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का फायदा देना। 

इस बिल को पास करने के बाद विंडफॉल टैक्स जैसे नए टैक्स को लागू करना मुश्किल हो गया। 

एग्जॉनमोबिल जैसी दुनिया की बड़ी कंपनियों ने भारत में तेल निकालने में दिलचस्पी दिखाई और गोदी मीडिया ने इसे निवेश की संभावना बताया। 

निवेश तो धेले भर का नहीं हुआ, लेकिन अंबानी की झोली में रूसी तेल आने लगा। 

संसद से बिल पास करवाने का काम पर्दे के पीछे ORF ने करवाया था। जाहिर है करोड़ों फूंके गए। 

अंबानी 5 से 30 डॉलर तक सस्ता रूसी तेल खरीदकर जामनगर की फैक्ट्री तक लाता और साफ कर यूरोप को बेच देता। 

अंबानी ने इस गोरखधंधे में 16 बिलियन डॉलर कमाए। भारत की एक तेल कंपनी ने 86 हजार करोड़ तो भारत पेट्रोलियम ने 1300% ज्यादा मुनाफा कमाया। 

भारत की जनता अभी भी 110 रुपए लीटर तेल खरीद रही है। 

रिलायंस और नायरा एनर्जी ने पूरी दुनिया को इस मुनाफे के कारोबार का सबक सिखाया। 

मोदी सत्ता को भी तेल के बहुत ज्यादा बेस प्राइस का फायदा सालाना करीब 5 लाख करोड़ के टैक्स के रूप में मिला। 

अब अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कल खुलेआम इस बात को दुनिया के सामने रख दिया। 

ORF की अभी 65% फंडिंग अंबानी करता है। इस संस्था को उसी ने थिंक टैंक के नाम से खड़ा किया और 95% तक फंडिंग की। 

ORF में फेसबुक का भी पैसा लगा है और गूगल, जापान बैंक का भी। 

ये इतनी ताकतवर है कि रायसीना डायलॉग के नाम से सालाना जलसा करवाती है, जिसमें जयशंकर का विदेश मंत्रालय भी भागीदार होता है। 

यानी ORF भारत की विदेश नीति में सीधे तौर पर शामिल है। मोदी सत्ता 11 साल से इसे पालती रही। 

ORF के वॉशिंगटन चैप्टर का मुखिया जयशंकर का बेटा है। 

कॉरपोरेट्स की फंडिंग से चल रहे इस कथित थिंक टैंक ने अमेरिका से भारत के रिश्ते बिगाड़े, क्योंकि रूस से उसे फायदा था। 

विदेश मंत्री पर जानबूझकर ब्रिक्स से दूरी बनाने का आरोप है। 

लेकिन, इस बीच ट्रंप का टैरिफ आ गया और सारी ड्रामेबाजी की पोल खुल गई। 

नरेंद्र मोदी ने चीन और रूस से रिश्ते सुधारने के लिए डोभाल को लगाया। जयशंकर को नापसंद करने वाले डोभाल ने रूस और चीन से रिश्ते सुधारे। 

अब अदानी लाला ने भी चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के नाम पर  CRF नाम की संस्था बनाई है और नीति आयोग के पूर्व मुखिया अमिताभ कांत को बिठा दिया है। 

मोदी सत्ता आगे अदानी लाला के इशारे पर संसद चलाने वाली है। 

तो यह खेल अब नरेंद्र मोदी की सत्ता, भारत की विदेश और रक्षा नीति के लिए खतरा बन चुका है। 

मोदी सत्ता ने विदेश और रक्षा नीति को उन कंपनियों के हवाले कर दिया है, जिन्हें देश हित की परवाह नहीं।

उन्हें सिर्फ मुनाफा चाहिए। उधर, मोदी सत्ता का एक मंत्री एथेनॉल मिलाकर मोदी सत्ता के समानांतर अपनी सत्ता बना रहा है। 

उससे मुकाबले के लिए इंडियन ऑयल ने 2 दिन पहले 160 रुपए लीटर का बिना एथेनॉल वाला पेट्रोल लॉन्च किया है। (साभार)


बुधवार, 20 अगस्त 2025

ये होता है आँख में आँख डाल कर बात करना…

 ये होता है आँख में आँख डाल कर बात करना…


जुमलेबाज़ी, और आत्ममुग्धता के इस दौर में यदि सत्ता सौ सौ चूहे खाकर हज को चली की कहावत को चरितार्थ करते हुए संविधान का 130 वा बिल सदन में ला रही है तो इसका मतलब क्या सहयोगियों को डराना नहीं है, अल्पमत या बैसाखियों की सरकार के करतूत नया नहीं है, ट्रंप की धमकी और अविश्वसनीय चीन से गलबहियाँ के बीच वोट चोरी के सबूत के आगे सरेंडर चुनाव आयोग के बीच आज एक ऐसे शख़्स की कहानी को याद करना ज़रूरी है जिसने मोदी सरकार से आँख से आँख मिलाने कि सज़ा पिछले कई सालों से भुगत रहा है, जेल में है लेकिन उनकी पत्नी और बच्चे इस लड़ाई को आगे ले जा रहे, लड़े जा रहे है अंजाम से बेपरवाह…

बात की शुरुआत चुनाव आयोग गुप्ता की फूहड़ता से की जा सकती है जो राहुल के सवालों का जवाब देने की बजाय बेशर्मी पर उतर आया है, तो दूसरी तरफ़ Ed सीबीआई का डर दिखाकर दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में कर लेने का खेल करने वाले अब १३० वा बिल लाकर नैतिकता की दुहाई दे रहे है तब उस शख़्स को याद कर लेते हैं , मोदी के आंख में आंख डालकर कोई शख्स लड़ा और उसकी कीमत चुका रहा है तो वे आईपीएस संजीव भट्ट हैं।1245 दिन से संजीव भट्ट पालनपुर जेल में हैं।उन्हें पहले 23 साल पुराने ड्रग्स केस में फंसाया गया,फिर 32 साल पुराने हिरासत में मौत मामले में फंसाया गया है। 

गुजरात दंगों के वक़्त 27 फरवरी 2002 की रात को एक क्लोज मीटिंग में मोदी ने संजीव भट्ट सहित 8 आईपीएस को मुस्लिमों को सबक सिखाने की बात कही थी।बाकी सब आईपीएस ने हां कह दिया पर संजीव भट्ट ने मना कर दिया।उन्होंने कहा लॉ एंड ऑर्डर हमारी ड्यूटी है और एक आईपीएस के रूप में हिंदुओं के साथ मुस्लिमों की सुरक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है।

यह बात मोदी को नागवार गुजरा ।2011 में आईपीएस संजीव भट्ट को निलंबित कर दिया गया।उन्हें मोदी ने साबरमती जेल में डाल दिया,फिर केंद्र में आने पर 2015 में पुलिस अधिकारी के रूप में उनकी सेवा भी खत्म कर दिया।संजीव भट्ट हार मानने की जगह लगातार लड़ते रहे।

मोदी को यह बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए पुराने मामलों में संजीव को जेल में डाल दिया। संजीव भट्ट के लिए जोर से सत्ता से टकराती उनकी पत्नी श्वेता पर हमला भी हुआ,उन्हें सुरक्षा मांगने पर भी नहीं दिया गया।संजीव भट्ट को हाई कोर्ट,सुप्रीम कोर्ट कहीं से भी न्याय नहीं मिल रहा है। 

संजीव भट्ट उनकी पत्नी श्वेता, उनके बेटे शांतनु और बेटी आकाशी बहुत बहादुर हैं।ये अलग ही मिट्टी के बने लोग हैं।मोदी इस परिवार की बहादुरी से गुजरात से डरता आया है।इस बहादुर परिवार का साथ देश के सभी लोगों को देना चाहिए।आज संजीव भट्ट और उनकी पत्नी श्वेता भट्ट के विवाह को 35 वर्ष पूरे हो गए हैं। उन्हें बहुत- बहुत शुभकामनाएं।उम्मीद है जल्द ही संजीव भट्ट आज़ाद होंगे(साभार)

मंगलवार, 19 अगस्त 2025

ये कौन आ गया…

 ये कौन आ गया…


स्वतंत्रता दिवस पर मोदी सरकार के ऑरवेलियन पोस्टर में गांधी, सुभाष और भगत सिंह से बड़ा सावरकर को बड़ा दिखाने का मतलब क्या सिर्फ़ संघी कुंठा है या फिर रेज़िम से लड़ना सीखा रहे राहुल गांधी से डरी सत्ता है, तय लोगो को करना है, राम मंदिर की पूजा कर चार सौ पार का दंभ भरने वाली सत्ता जब २४० पर अटक गई तो भी वह नहीं समझ रहा है कि आप कितनी भी होशियारी कर लो प्रकृति के न्याय से बच नहीं सकते…

स्वतंत्रता दिवस पर मोदी सत्ता की पोस्टर पर चर्चा करने से पहले हम याद दिलाना चाहते हैं कि  जिस दिन राममंदिर का कार्यक्रम हो रहा था 22 जनवरी को उस दिन तो ये माहौल था कि विपक्ष को एक भी सीट नहीं आयेगी ऐसा अंधी फौज वातावरण बना रहीं थी पर अब तो ये हालत हैं कि चुनाव आयोग की बेईमानी नहीं होती तो सत्तापक्ष 150 पर सिमट जाता। पर परिवर्तन आया राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से। लोगो ने फिर से कांग्रेस को नोटिस करना शुरू कर दिया। अब राहुल गांधी फिर से आंध्र प्रदेश वाली स्टाईल में लगे हैं और चुनाव आयोग से दो दो हाथ कर रहे हैं तो अब एक काम और होगा कि लोगो की चर्चा में अब ये बात आ जायेगी कि मोदी का विकल्प राहुल गांधी ही हैं। वास्तव में भारत को बहुत दिनो बाद कोई मिला हैं जो रेजिम से लड़ना सीखा रहा सबको। दुसरा गांधी आ गया हैं और आज के युवा का ओर हम सबका ये सौभाग्य हैं कि फिर से रेजिम को घुटने टेकते हम लोग देखेंगे । क्योकिं उस गांधी के सामने रेजिम झुका था ये हम देखे नहीं थे परंतु तरीका वहीं लेकर दुसरा गांधी आज रेजिम को झुका रहा है तो इतिहास की ये पुनरावृत्ती आनंददायक हैं और लगता हैं नियती हमारी कल्पना से बाहर आगे बढ़ गई हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वो सवाल जो केंचुआ कल की प्रेस कांफ्रेंस में पूछे गए लेकिन जिनका कोई सीधा जवाब नहीं मिल पाया :

* राहुल गांधी से एफिडेविट मांगा तो अनुराग ठाकुर से क्यों नहीं?

* समाजवादी पार्टी ने जो एफिडेविट दिया था उसकी जांच क्यों नहीं?

* वोटर लिस्ट डिफेक्टिव थी तो क्या पुराने चुनाव में घपला था?

* SIR से पहले पार्टियों से राय मशविरा क्यों नहीं हुआ?

* चुनाव वाले साल में इंटेंसिव रिवीजन ना करने की स्थापित मर्यादा क्यों तोड़ी गई?

* इतनी हड़बड़ी में बारिश बाढ़ के बीच SIR क्यों?

* कितने लोगों ने फॉर्म के साथ कोई दस्तावेज नहीं जमा करवाया ?

* BLO ने कितने फॉर्म को “नोट रिकमेंडेड” श्रेणी में डाला? किस आधार पर?

* बिहार में SIR के दौरान जून-जुलाई के बीच कितने नाम जोड़े गए?

* SIR के ज़रिए पुरानी वोटर लिस्ट में कितने विदेशी घुसपैठिए निकले?

लेकिन यदि मक्कारी हो तो जवाब सन्नाटा ही रहेगा।

ख़ैर आज बात उस कुंठा की…

स्वतंत्रता दिवस पर मोदी सरकार के 'ऑरवेलियन' पोस्टर में गांधी और सुभाष चंद्र बोस,भगत सिंह से ऊपर सावरकर को दिखाया गया, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। जिस महात्मा गांधी को पूरी दुनिया पूजती है, मार्टिन लूथर किंग जू. से लेकर नेल्सन मंडेला तक।

बराक ओबामा जब राष्ट्रपति थे तो उनसे एक विद्यालय में स्टूडेंट द्वारा पूछा गया था कि: 

जीवित या दिवंगत में से,यदि मौका मिले तो किसके साथ  आप डिनर लेना चाहेंगे? उन्होंने तुरंत कहा " महात्मा गांधी "

महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे, षड्यंत्रकर्ता सावरकर जो इन संघियों, भाजपाइयों, के आदर्श हैं, के द्वारा इस महान सपूत की हत्या की गई, क्या यह भारतीय संस्कृति के सहिष्णुता पर कलंक नही है...??

फोटो और दुस्साहस देखिए, आखि़र कितने निर्लज्ज एवं गद्दार हैं ये संघी, भाजपाई...!!

 कौन है यह सावरकर....??

 जिन्ना के मुस्लिम लीग से 3 वर्ष पूर्व ही सावरकर ने हिन्दू राष्ट्र की मांग कर दी थी...

उन्होंने 1943 को लिखा कि " मि. जिन्ना के " दो राष्ट्र " सिद्धांत से मेरा कोई झगड़ा नही है, हम हिंदू अपने आप में राष्ट्र हैं, और यह ऐतिहासिक तथ्य है कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र है "  

ये वही सावरकर है जिन्होंने  " द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस -1857 " लिखी थी। साथ ही यह वही सावरकर हैं जिन्होंने लिखा है कि:  यह राष्ट्र उन्हीं का है जिसका यह पितृभूमि है, पुण्यभूमि है, अर्थात इनकी माने तो मुस्लिम और पारसी , ईसाई को बाहरी मानतें हैं ...

 जेल में जीवन गुजारे किन्तु अंत मे अंग्रेजों के प्रति ईमानदार स्वामी भक्ति का माफीनामा भी लिखे। एवं अंग्रेजों से पेंसन लेते रहे...

 " 1942 के " अंग्रेजों भारत छोड़ो " आंदोलन का विरोध करते हुए अपने संगठन हिंदू महासभा द्वारा अंग्रेजों का साथ देने की घोषणा की..

 अंग्रेजों का साथ देने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिन्द फौज का विरोध किया, एवं आजाद हिन्द फौज के खिलाफ लड़ने के लिए जगह जगह जाकर युवाओं से अंग्रेजी सेना में भर्ती  होने को कहा ....

 क्या देश का इससे बड़ा भी कोई गद्दार हो सकता है....?? 

भक्तों को नही पता कि सावरकर नास्तिक था क्योंकि भक्तों के नजर में नास्तिक दुश्मन होते हैं ....

इसीलिए सावरकर ने हिन्दूधर्म में जिस  गाय को पूज्यनीय माता का दर्जा दिया गया है, उसे काटने एवं गाय के गोश्त खाने की भी पैरोकारी की । साथ ही गाय के गोबर एवं मुत्र को गंदा कहकर निकृष्ट जानवर बताया है। सावरकर गाय को पूज्यनीय मानने से इंकार कर देते हैं । इसपर गाय, गोबर वाले संघी भक्त चुप रहते हैं ...

 बहरहाल गांधी के हत्या के आरोप हिन्दू महासभा के इस नेता सावरकर पर भी लगता है , संलग्नता होने के बावजूद पर्याप्त सबूतों के अभाव में सावरकर को बरी कर दिया जाता है । ये भी एक रहस्य है...

 इनके द्वी राष्ट्र सिद्धांत पर भारत और पाकिस्तान नाम से दो राष्ट्र हो चुका है । इनके विचारों को मानने वालों की केन्द्र में सरकार है जो इन्हें भारत रत्न देने पर विचार कर रही हैं...(साभार)

 


सोमवार, 18 अगस्त 2025

सुभाष बाबू का सच और पूरा एक झूठा जमात…

 सुभाष बाबू का सच और पूरा एक झूठा जमात…


वैसे भी कहा जाता है कि जिसका पूरा इतिहास कलंक से भरा हो वह इतिहास पुरुषों  के पीछे छिपकर अपना पाप छुपाने की कोशिश करता है , जिनका पूरा कुनबा अंग्रेजों की वफ़ादारी और नफ़रत से सराबोर हो उन लोगों से उम्मीद बेमानी है , उनकी निष्ठा न तो भगत सिंह, सरदार पटेल के प्रति है और न ही सुभाष बाबू के प्रति, वे तो केवल झूठ फैलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते है ऐसे में सुभाष बाबू को लेकर फैलाए गए भ्रम का पर्दाफ़ाश ज़रूरी है…

नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय जनमानस में एक अमर वीर नायक हैं। कई अन्य नेताओं की तरह नेताजी कभी विस्मृति में नहीं डूबे। उनका असाधारण जीवन, संघर्ष और मृत्यु आज भी चर्चा का विषय बने हुए हैं। यदि भारतीय मन में अदम्य, निडर और साहसिक देशभक्ति का कोई मनोहारी चेहरा है, तो वह निश्चित रूप से नेताजी ही हैं।

उनके लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपनाए गए रास्ते, उसकी व्यावहारिकता की कमी और फासीवादियों का समर्थन लेने जैसे कदमों की आलोचना के बावजूद, उनके देशभक्ति पर किसी को संदेह नहीं था। यही कारण है कि नेताजी की रहस्यमयी मृत्यु को आज भी हम गहरे दुख के साथ याद करते हैं।

हालांकि, हाल के समय में नेताजी की स्मृति को उनके महान विरासत को हड़पने और गांधीजी, नेहरू सहित राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं को उनके प्रतिनायक के रूप में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। लेकिन अहिंसा पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम की राजनीतिक प्रभावशीलता पर मतभेद, नेताजी के उत्साहपूर्ण रवैये पर असहमति, और हिटलर व मुसोलिनी के प्रति उनके रुझान के विरोध के बावजूद, गांधीजी और नेहरू के साथ नेताजी का परस्पर स्नेह और सम्मान का एक अनुपम बंधन था। नेताजी, गांधीजी, नेहरू और जिन्ना द्वारा एक-दूसरे को लिखे गए पत्रों को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है। सुगाता बोस की पुस्तक (Subhash Chandra Bose: Speeches, Articles and Letters) और रुद्रांशु मुखर्जी की पुस्तक (Nehru and Bose: Parallel Lives) में इसका स्पष्ट उल्लेख है।

कथित तौर पर तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को नेहरू द्वारा लिखा गया एक जाली पत्र, जिसमें नेहरू ने नेताजी को "आपका युद्ध अपराधी" कहा, सोशल मीडिया पर नेहरू की नेताजी के प्रति "कट्टर शत्रुता" के सबूत के रूप में व्यापक रूप से प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन, 26 और 27 दिसंबर 1945 को अलग-अलग तारीखों के साथ इस पत्र की कई प्रतियां इंटरनेट पर उपलब्ध होने के कारण, यह स्पष्ट है कि यह पत्र जाली है। नेहरू की भाषा शुद्धता और शैली को जानने वाले इस पत्र को, जो व्याकरण और वर्तनी की गलतियों से भरा है, हंसी में उड़ा देंगे। फिर भी, यह सोचने की बात है कि भारत में लाखों लोग इस तरह के फोटोशॉप निर्मित पत्र को उत्साहपूर्वक प्रचारित करते हैं। दावा किया जाता है कि नेहरू ने दिल्ली में अपने स्टेनोग्राफर श्यामलाल जैन को यह पत्र लिखवाया था। लेकिन, समकालीन समाचार पत्रों से स्पष्ट है कि 25 से 29 दिसंबर तक नेहरू बिहार और इलाहाबाद में थे।

25 दिसंबर 1945 को बिहार के बांकीपुर में एक सार्वजनिक सभा में, नेहरू ने आईएनए का प्रेरणादायक युद्ध गीत "कदम कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा..." को उत्साहपूर्वक गाया और जनता से इसे जोश के साथ दोहराने का आह्वान किया। यह खबर अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। यह कल्पना करना कितना हास्यास्पद है कि एक दिन पहले नेताजी के युद्ध गीत को उत्साह से गाने वाले नेहरू ने अगले ही दिन उन्हें "युद्ध अपराधी" कहकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पत्र लिखा!

जिन्हें अब कुछ लोग "नेताजी के शत्रु" कहते हैं, वही इंडियन नेशनल कांग्रेस थी, जिसने 1945-46 में आईएनए अधिकारियों के सार्वजनिक मुकदमे में उनकी पैरवी के लिए आगे बढ़कर वकीलों की एक मजबूत टीम बनाई, जिसमें नेहरू स्वयं शामिल थे। इसके लिए नेहरू ने 25 साल बाद वकील का चोगा फिर से पहना। भूलाभाई देसाई, आसफ अली, तेज बहादुर सप्रू, और होरीलाल वर्मा जैसे प्रख्यात वकीलों ने आईएनए अधिकारियों के लिए मजबूती से अदालत में पैरवी की और उन्हें भारतीय जनता के सामने वीर नायकों के रूप में स्थापित किया। यह काम कांग्रेस ने किया, न कि हिंदू महासभा के नेताओं ने।

कांग्रेस और आईएनए रिलीफ कमेटी ने 12 नवंबर 1945 को कोलकाता के देशप्रिय पार्क में आयोजित आईएनए दिवस समारोह में नेताजी के भाई शरत बोस, नेहरू और सरदार पटेल ने लाखों लोगों को संबोधित करते हुए नेताजी की साहसिक देशभक्ति की भावुक बातें कीं। प्रधानमंत्री बनने के बाद लाल किले में अपने पहले भाषण में भी नेहरू ने गांधीजी के साथ केवल नेताजी का ही उल्लेख किया।

भारतीय संविधान के मूल स्वरूप में केवल दो स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें शामिल की गईं: पहली, राष्ट्रपिता गांधीजी की, और दूसरी, नेताजी की, जिन्हें गांधीजी को "राष्ट्रपिता" कहने वाले पहले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।

आईएनए की चार ब्रिगेडों के नाम गांधी, नेहरू, आजाद और सुभाष थे, साथ ही झांसी रानी रेजिमेंट भी थी। इन नामों को चुनते समय नेताजी के दिमाग में सावरकर या गोलवलकर का नाम कभी नहीं आया। यह स्पष्ट है कि नेताजी का विश्वदृष्टिकोण धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी था, और वे अपनी कांग्रेस विरासत पर गर्व करते थे।

इतिहास में कई सबूत हैं जो नेहरू और बोस के बीच गहरे भावनात्मक बंधन को दर्शाते हैं। जब नेहरू की पत्नी कमला नेहरू यूरोप में बीमार थीं, तो बोस ने एक भाई की तरह उनकी हर संभव मदद की। जून 1935 में, पित्ताशय की सर्जरी के बाद वियना से चेकोस्लोवाकिया की यात्रा के दौरान, गंभीर अस्थमा से पीड़ित और अत्यंत कमजोर कमला नेहरू के साथ बोस प्राग गए। उस समय नेहरू भारत में जेल में थे।

सितंबर में, बोस ने जर्मनी के बैडनवीलर सैनिटोरियम में इलाजरत कमला को फिर से देखा। तब तक मरणासन्न कमला से मिलने की अनुमति पाकर नेहरू वहां पहुंच चुके थे। बोस ने एक स्नेहपूर्ण भाई की तरह दोनों के साथ समय बिताया। मानसिक रूप से टूट चुके नेहरू के लिए बोस की उपस्थिति एक बड़ा सहारा थी।

जब कमला को स्विटजरलैंड के लुसाने में एक रिसॉर्ट में भर्ती किया गया, तो बोस वहां भी पहुंचे। 26 फरवरी 1936 को बोस लुसाने पहुंचे। कमला की गंभीर स्थिति को समझकर बोस ने रोमेन रोलैंड से मिलने की अपनी यात्रा रद्द कर दी और अपने प्रिय मित्र के साथ अस्पताल में रहे। तब तक नेहरू की बेटी इंदिरा भी वहां पहुंच चुकी थीं। अंततः, 28 फरवरी को कमला के अंतिम सांस लेने के समय बोस नेहरू और इंदिरा को गले लगाकर सांत्वना दी। शव के अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी बोस ने ही की (कृष्णा बोस, Emilie and Subhash: A True Love Story)।

बोस की दुखद मृत्यु के बाद भी नेहरू उन्हें नहीं भूले। कांग्रेस द्वारा नेताजी के नाम पर बनाए गए ट्रस्ट में नेहरू भी सदस्य थे, और उनकी सरकार ने नेताजी की बेटी और पत्नी को प्रतिवर्ष छह हजार रुपये भेजे। 1961 में जब नेताजी की बेटी अनिता बोस निजी यात्रा पर भारत आईं, तो नेहरू ने उनका भव्य स्वागत किया। अठारह साल की उस लड़की को कई राज्यों में आतिथ्य और भोज दिया गया, और दिल्ली में वह नेहरू के आधिकारिक निवास पर रहीं।

कई लोग मानते हैं कि अगर नेहरू की जगह नेताजी प्रधानमंत्री होते, तो भारत का भविष्य कुछ और होता। लेकिन नेताजी नेहरू से भी अधिक स्पष्ट समाजवादी थे। जब वे कांग्रेस अध्यक्ष बने, तो उन्होंने पहली बार प्लानिंग कमीशन बनाया और नेहरू को इसका अध्यक्ष बनने के लिए आमंत्रित किया। साथ ही, वे आधुनिकता, धर्मनिरपेक्षता और समानता में दृढ़ विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे।

उन्होंने मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा जैसे धार्मिक संगठनों के सदस्यों को कांग्रेस में शामिल होने से रोक दिया था। आईएनए में उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को शामिल किया। उन्होंने कभी भी हिंदू प्रतीकों या हिंदू पहचान पर आधारित राष्ट्रवाद में विश्वास नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने "विविधता भरे भारत" के विचार में विश्वास किया और इसे बढ़ावा दिया।

उन्होंने स्वतंत्र भारत में सभी धार्मिक और भाषाई समुदायों को समान रूप से सत्ता में हिस्सेदारी देने की वकालत की। एक बार सिंगापुर के एक चेट्टियार मंदिर के पुजारियों ने उन्हें मंदिर में आने का निमंत्रण दिया, लेकिन गैर-हिंदुओं को मंदिर में प्रवेश न देने के नियम के कारण उन्होंने पहले इसे ठुकरा दिया। जब उन्हें सभी जातियों और धर्मों को शामिल करने वाले एक सार्वजनिक समारोह का आश्वासन मिला, तभी वे मंदिर गए। उस समय उनके साथ आईएनए के मुस्लिम सहयोगी आबिद हसन और मोहम्मद समयम कियानी भी थे।

संक्षेप में, नेताजी ने एक धर्मनिरपेक्ष, स्वतंत्र और समतामूलक लोकतांत्रिक भारत के लिए जिया और मरा। उनकी विचारधारा और कार्यशैली एकरूप और धार्मिक उग्र दक्षिणपंथ के बिल्कुल विपरीत थी। इसलिए उनकी विरासत को बहुसंख्यक राष्ट्रवाद के पैरोकार आसानी से हड़प नहीं सकते।

नेताजी ने साम्राज्यवाद का प्रतिरोध आत्मबलिदान के माध्यम से किया, न कि धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता संग्राम को धोखा देकर। इसलिए नेहरू को बाहर रखकर पोस्टर में फोटो लगाकर नेताजी को आसानी से अपना बनाने की कोशिश न करें।

(मेरी पुस्तक "इंडिया का विचार" का एक प्रिय अध्याय - सुधा मेनन)

रविवार, 17 अगस्त 2025

प्रेस कांफ्रेंस का खेल करते पकड़े गये चुनाव आयोग

 प्रेस कांफ्रेंस का खेल करते पकड़े गये चुनाव आयोग 


यह तो चोरी और सीना ज़ोरी की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना वोट चोरी के मामले में चुनाव आयुक्त इस तरह से खेल नहीं करते कौन है ये ज्ञानेश कुमार गुप्ता आप भी जान ले…

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार गुप्ता जी राजनैतिक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए थे और धमका कर चले गए।तो क्या यह सब नौटंकी सिर्फ़ राहुल को धमकाने के लिए थी जबकि राहुल को लेकर पूरी दुनिया जान चुकी है कि राहुल किसी से डरने वाले नहीं हैं 

शायद चुनाव आयुक्त में इतनी भी समझ नहीं है कि संघर्ष, बाधा, परिस्थिति की एक ब्राइट एस्पेक्ट होता है, यह लीडर पैदा करता है ।

राहुल गांधी को मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, पर तब वो एक परिपक्व राजनेता नहीं बन पाते। आज वो पीएम नहीं हैं, पर लोक नेता बन चुके हैं !जो कि उन्होंने उनका माखौल, IT ED CBI दबाव , पार्टी की  हार के बीच ,पद यात्रा, संघर्ष, ईमानदारी,त्याग, प्यार से प्राप्त किया है।

आज अमित शाह के सहकारिता मंत्रालय में सचिव के रूप में कार्य कर चुका सीईसी ज्ञानेश गुप्ता के प्रेस कॉन्फ्रेंस से राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोप और पुख़्ता हो गए, 

देश की जनता एवं प्रबुद्ध नागरिक, पत्रकारों ने राहुल गांधी को हीरो बता रहे हैं। जबकि ज्ञानेश गुप्ता को खलनायक, सोशल साइट इंस्टा, x आदि पर ज्ञानेश गुप्ता से लोग सवाल पूछ रहे हैं, ट्रोल कर रहे हैं।

बिहार का विधानसभा चुनाव एनडीए के लिए आखिरी कील साबित होगी।

ज्ञानेश कुमार गुप्ता गृहमंत्री अमित शाह के आंख कान रहें हैं। वह गृहमंत्री अमित शाह के सबसे विश्वसनीय अधिकारी रहे हैं जिन्हें समय पूर्व रिटायर कराकर देश‌ का चुनाव आयुक्त बनाया गया है। इसके पूर्व ज्ञानेश कुमार गुप्ता धारा 370 और राममंदिर निर्माण का नेतृत्व कर चुके हैं..

ज्ञानेश कुमार गुप्ता के पिता डॉ. सुबोध कुमार गुप्ता, पेशे से चिकित्सक थे और आगरा में चीफ मेडिकल ऑफिसर (CMO) के पद से सेवानिवृत्त हुए। 

ज्ञानेश कुमार गुप्ता के भाई मनीष कुमार 1991 बैच के भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी हैं।

ज्ञानेश कुमार गुप्ता के बहनोई उपेंद्र कुमार जैन 1992 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के IPS अधिकारी हैं और वर्तमान में अपर पुलिस महानिदेशक (ADG) के पद पर कार्यरत हैं।

ज्ञानेश कुमार गुप्ता की बड़ी बेटी मेधा रूपम 2014 बैच की IAS अधिकारी हैं और वर्तमान में उत्तर प्रदेश के नोएडा जिले की जिलाधिकारी (DM) हैं। 

ज्ञानेश कुमार गुप्ता की इस बेटी के पति‌ मनीष बंसल भी 2014 बैच के IAS अधिकारी हैं और सहारनपुर के जिलाधिकारी हैं। 

ज्ञानेश कुमार गुप्ता की छोटी बेटी अभिश्री, भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी हैं, जिन्होंने 2017 में UPSC सिविल सेवा परीक्षा पास की। 

अभिश्री के पति, अक्षय लाबरू, 2018 बैच के त्रिपुरा कैडर के IAS अधिकारी हैं और वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में सूचना विभाग के निदेशक और लेफ्टिनेंट गवर्नर के सचिवालय में अतिरिक्त सचिव के रूप में कार्यरत हैं।


बेटा: अरनव, जो अभी पढ़ाई कर रहा है वह भी जल्दी ही IAS बनेगा.. 


बाकी लोगों को 5 किलो मुफ्त अनाज मिल ही रहा है...(साभार)

शनिवार, 16 अगस्त 2025

छत्तीसगढ़ की बेटी श्वेता चौबे आईपीएस ने छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया

 छत्तीसगढ़ की बेटी श्वेता चौबे आईपीएस ने छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया 



झारखंड में शेरनी आईपीएस श्वेता चौबे छत्तीसगढ़ की बेटी है, उन्होंने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलकर न केवल छत्तीसगढ़ को गौरान्वित किया बल्कि ऐसा मुक़ाम हासिल किया जो हर आईपीएस का सपना होता है, मूलतः सारंगढ़ की श्वेता चौबे ने साबित कर दिया कि यदि ईमानदारी से कर्तव्य निभाया जाय तो कोई कार्य असंभव नहीं है, श्वेता की माँ पुष्पा चौबे सेमरा परिवार की बेटी है।

आईपीएस श्वेता चौबे की स्मार्ट पुलिसिंग के बारे में कौन नहीं जाता है। वर्तमान में पौडी में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात श्वेता चौबे अपनी विशिष्ठ कार्यशैली के लिए पहचानी जाती है। इससे पहले पुलिस अधीक्षक चमोली के पद पर कार्यरत रही है। कोरोना काल में बतौर एसपी सिटी उनके कार्यकाल की हर किसी ने सराहना की है। देहरादून में लोग आज भी उनको याद करते हैं। इसके अलावा 2021 के महाकुंभ के दौरान उन्होंने जिस तरह से कार्य किया है वह किसी से छिपा नहीं है। एसआइटी में रहते हुए उन्होंने शिक्षक भर्ती घोटाले का भंडाफोड़ किया तो विजिलेंस में रहते हुए बड़े-बड़े भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने का काम किया है। अंकिता भंडारी कांड के बाद पौड़ी जिले के बिगड़ते हालत को देखते हुए उनको पौड़ी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की जिम्मेदारी मिली थी। उनके नेतृत्व में पौड़ी पुलिस ने कई बड़ी सफलता हासिल की है। इस बार के कांवड़ मेले के दौरान नीलकंठ महादेव मंदिर में उमड़ी भीड़ एवं खराब मौसम के बीच वह लगातार पुलिसकर्मियों का उत्साहवर्धन करती रही। 

इससे पहले महिला सुरक्षा के लिए चलाए गए ऑपरेशन पिंक प्रोजेक्ट के लिए आईपीएस श्वेता चौबे स्कोच अवार्ड से सम्मानित। नई दिल्ली में आयोजित समारोह में उन्हें यह सम्मान मिला। चौबे ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पौडी गढवाल के कार्यकाल के दौरान कुशल नेतृत्व और उत्कृष्ट कार्य प्रणाली के तहत जनपद में बालिकाओं व महिलाओं की सुरक्षा को गंभीरता से लेते हुए ऑपरेशन पिंक प्रोजेक्ट चलाया गया था। इसके तहत जनपद में वृहद स्तर पर प्रशिक्षण देकर महिला दरोगा व महिला कांस्टेबल को महिला सुरक्षा से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया गया। उसके उपरांत उन्हें जनपद के विभिन्न थाना क्षेत्रों में ऑपरेशन पिंक के अन्तर्गत पिंक यूनिट टीम का गठन कर तैनात किया गया। पिंक यूनिट टीम का कार्य अपने थाना क्षेत्रों में पड़ने वाले स्कूल कालेज परिसर के बाहर मौजूद रहकर शान्ति एवं कानून व्यवस्था बनाने, मनचलों, शरारती, अराजक तत्वों पर कड़ी नजर रखने, छात्राओं को गुड टच बैड टच की जानकारी देने, साइबर सुरक्षा, पोक्सो एक्ट व सोशल मीडिया में ट्विटर, इस्टाग्राम, फेसबुक का सुरक्षित उपयोग सम्बन्धी जानकारी देना रहा। स्कूल-कॉलेज, नौकरीपेशा लड़कियों, महिलाओं की सुरक्षा के लिए पिंक यूनिट ने सुरक्षा कवच का काम किया।

दुर्ग जिले में बिता है IPS श्वेता चौबे का बचपन
इसके बाद वे सन 2000 में विशिष्ट पुलिसिंग सेवा के लिए भी राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजे गए थे। आपको बता दें कि श्वेता चौबे का पूरा बचपन छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में ही बीता है और उनका दादिहाल सारंगढ़ है। श्वेता ने सन 2005 में बतौर डीएसपी राज्य पुलिस सेवा में अपने करियर की शुरुआत की थी और अपने दबंग अंदाज के चलते उन्हें धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड में उत्तराखंड की शेरनी के नाम से जाना जाने लगा। सन 2019 में उन्हें आईपीएस अवार्ड हुआ और वे देहरादून में बतौर एसपी पदस्थ हुई, कोरोना काल में बतौर एसपी सिटी उनके कार्यकाल की हर किसी ने सराहना की। इसके अलावा 2021 के महाकुंभ के दौरान उन्होंने जिस तरह से कार्य किया वह किसी से छिपा नहीं है।

श्वेता चौबे ने बताया कि उनके पिता  विजय शंकर चौबे को बचपन से ही उन्होंने पुलिस में सेवा देते हुए देखा है जिसके चलते वे भी बचपन से ही एक बड़ी पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी और उनका यह सपना तब पूरा हुआ जब वे उत्तराखंड राज्य पुलिस सेवा में बतौर डीएसपी पदस्त हुईं। श्वेता ने बताया कि इस पुरस्कार के मिलने से वे बहुत खुश हैं लेकिन उससे भी ज्यादा खुशी उन्हें इस बात की है कि वे अपने पिता के पदचिन्हों पर आगे बढ़ रहीं है और आगे भी इसी तरह वो अपने पिता के आदर्शों के साथ ईमानदारी से पुलिस विभाग में अपनी सेवाएं देती रहेंगी।

श्वेता चौबे के पिता विजय शंकर चौबे दो बार राष्ट्रपति पदक से सम्मानित हुए पहली बार १९८७ और दूसरी बार २००० में। 

मूलतः सारंगढ़ के रहने वाले श्री चौबे का ससुराल सेमरा परिवार है, श्वेता चौबे की माँ पुष्पा चौबे सेमरा परिवार की बेटी है ।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

मोदी 2035 तक गद्दी नहीं छोड़ना चाहते…

 मोदी 2035 तक गद्दी  नहीं छोड़ना चाहते…


एक तरफ़ जब समूची मीडिया यह बताने में लगी है कि पचहत्तर की उम्र में आरएसएस उन्हें हटा देगी, शाह की ताजपोशी की तैयारी चल रही है तब लालक़िले के प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी का 2035 तक चाहता हूँ कहना किस बात का संकेत है…

हालाँकि लोगों को अक्सर यह कहते सुना जा सकता है कि यह आदमी लाल किले की प्राचीर से बोलने लायक नहीं है ! इनमे  वह गरिमा और गंभीरता नहीं है,  जिसकी अपेक्षा की जाती है  ! इनकी  भाषा चुनावी टोन से आगे नहीं जा पाती  ! कोसना , कलपना चारित्रिक गुणों की तरह व्यक्तित्व में समाये हुए है। सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इन्होने आज देश दुनिया को एक सौ तीन मिनिट की यंत्रणा दी , काफी उबाऊ , थकाऊ टाइप का भाषण था , जिसका अंडर  करंट दिमाग में चल रही चुनावी खब्त ( बिहार और फिर बंगाल ) को दर्शा रहा था। देश इनसे ट्रम्प का नाम सुनना चाहता था , चाइना का नाम सुनना चाहता था , वोट चोरी पर स्पस्टीकरण चाहता था लेकिन बड़े मियां पाकिस्तान से आगे नहीं निकल पाए। 

क्षिक्षा , रोजगार , स्वास्थ वैसे भी कभी इनकी प्राथमिकता में नहीं रहे थे , इस बार भी नदारद थे ! हाँ बासी कड़ी में उबाल देने के लिए देश भक्ति थी और बताते है कि इनडायरेक्टली मुस्लिम भी थे। 

राहुल रोजाना ही इनकी छाती पर मुंग दल रहे है , इनके पास जवाब नहीं है तो वह गुस्सा इनके चेहरे का स्थाई भाव बनता जा रहा है , अक्सर वाणी से भी प्रस्फुटित हो ही जाता है। 

जुमले बे असर हो रहे है ! फेक्ट चेकर इनका मुंह खुलते ही सक्रिय हो रहे है , लगभग हर दांव उल्टा पड़ रहा है -शास्त्रों में इसे अंत की शुरुआत भी कहा जाता है !

भाषण में उस आरएसएस का ज़िक्र जिसका आज़ादी के आंदोलन की बजाय अंग्रेजों की तीमारदार और जासूसी पर ज़्यादा भरोसा था उनकी पश्चाताप की झलक कहा जाय तो ग़लत नहीं होगा लेकिन किसी भी बलिदानी का ज़िक्र किए स्वतंत्रता दिवस मनाना भी किसी दुर्भावना से कम नहीं माना जाना चाहिए ।

ऐसे में मोदी के भाषण का सबसे ख़ास बात यह है कि उनके द्वारा गद्दी  नहीं छोड़ने का इंडायरेक्ट एलान है…

पीएम मोदी ने आज लाल किले के प्राचीर से कहा:

2035 तक देश के सभी महत्वपूर्ण स्थलों,सामरिक के साथ सिविलियन क्षेत्र और आस्था के केंद्र को टेक्नोलॉजी के नए प्लेटफॉर्म के जरिये पूरी तरह सुरक्षा का कवच दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि आने वाले 10 साल 2035 तक इस राष्ट्रीय सुरक्षा कवच का विस्तार करना चाहता हूं....!!

इधर मीडिया में चल रहा था कि RSS इन्हें 75 साल पूरे होने के पहले हटा देगी, मोदी अपने प्यादे शाह को पीएम पद पर बिठाने वाले हैं आदि आदि। जबकि आज के भाषण से लग रहा है मोदी गद्दी छोड़ने वाले नहीं..(साभार)


गुरुवार, 14 अगस्त 2025

बदल गया EVM का परिणाम सुप्रीम कोर्ट में हारा हुआ जीता

 बदल गया EVM का परिणाम, सुप्रीम कोर्ट में हारा हुआ जीता 


लगता है कि मोदी सत्ता और चुनाव आयोग के बुरे दिन शुरू हो गये है, उधर हरियाणा में ईवीएम से हारा व्यक्ति पुनर्गणना में जीत गया तो अनुराग ठाकुर ने होशियारी दिखाकर आयोग और पार्टी को ही मुसीबत में खड़ा कर दिया है, सुप्रीम कोर्ट का ६५ लाख वॉटरो को दिया फ़ैसला भी चुनाव आयोग के लिये मुसीबत बढ़ाने वाला है तो २०२४ का चुनाव शून्य घोषित करने की आवाज़ देश भर में गूंजने लगी है…

हरियाणा में ईवीएम का परिणाम सुप्रीम कोर्ट में कैसे बदला उससे पहले बता देते है कि मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु बेहतर, अनुराग ठाकुर की प्रेस कॉन्फ्रेंस से मोदी सरकार बुरी तरह फँस गई है 

प्राचीन कहावतें अक्सर वर्तमान घटनाओं को आईना दिखाती हैं। "मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु बेहतर" यह उक्ति अनुराग ठाकुर पर बिल्कुल सटीक लागू होती है, सांसद अनुराग "गोलीमारो" ठाकुर ने विपक्ष को घेरने की कोशिश में अपनी ही सरकार और चुनाव आयोग को फंसा दिया। 13 अगस्त 2025 को दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ठाकुर ने छह लोकसभा सीटों—रायबरेली, वायनाड, कन्नौज, डायमंड हार्बर, अमेठी और एक अन्य—पर फर्जी वोटरों की मौजूदगी का आरोप लगाया, जिसमें लाखों संदिग्ध मतदाता, डुप्लिकेट एंट्रीज, फर्जी पते और आयु में हेरफेर के आंकड़े पेश किए। उनका इरादा कांग्रेस नेता राहुल गांधी के 'वोट चोरी' के आरोपों का जवाब देना था, जहां गांधी ने भाजपा और चुनाव आयोग पर फर्जी वोटों से चुनाव प्रभावित करने का इल्जाम लगाया था।

ठाकुर की यह रणनीति विपक्ष को निशाना बनाने की थी, खासकर राहुल गांधी की वायनाड और रायबरेली सीटों पर, जहां उन्होंने दावा किया कि फर्जी वोटरों ने चुनाव परिणाम प्रभावित किए, लेकिन यह कदम उल्टा पड़ गया। कांग्रेस ने तुरंत पलटवार करते हुए कहा कि अगर सत्ताधारी पार्टी के सांसद खुद मतदाता सूचियों में फर्जीवाड़ा स्वीकार कर रहे हैं, तो केंचुआ पूरी तरह से इसके लिए जिम्मेदार है क्योंकि वोटर लिस्ट तो उसी ने तैयार की, विपक्ष ने मांग कर दी कि पूरा 2024 लोकसभा चुनाव अमान्य घोषित किया जाए, क्योंकि यह फर्जी वोटर लिस्ट पर आधारित था, यह तो  राहुल के आरोपों की पुष्टि करता है, अब यह भी पूछा जा रहा है कि भाजपा को वोटर काकंप्यूटर रीडेबल डेटा कैसे मिला जबकि विपक्ष को नहीं। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी की वाराणसी सीट पर भी सवाल उठने से शुरू हो गए हैं, आरोप लगाया जा रहा है कि भाजपा-चुनाव आयोग की मिलीभगत से फर्जी लिस्ट तैयार हुई। 

गोली मारो ठाकुर का इरादा विपक्ष को कमजोर करना था, लेकिन उनके आंकड़ों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता को कटघरे में खड़ा कर दिया।  आयोग ने राहुल गांधी को नोटिस जारी किया था, लेकिन ठाकुर को नहीं, जो स्पष्ट पक्षपात का संकेत देता है। परिणामस्वरूप, सरकार फंस गई—एक ओर विपक्ष नए चुनाव की मांग कर रहा है, दूसरी ओर भाजपा को अपनी ही बातों का बचाव करना पड़ रहा है।

अभी बीजेपी बचाव भी नहीं कर पाई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने चूना आयोग से साफ कहा है कि बिहार की वोटर लिस्ट से काटे गए 65 लाख लोगों के नाम

1. जिलावार

2. श्रेणीवार

3. EPIC नंबर के साथ 

वेबसाइट पर दिखाना होगा। 

साथ में एक सर्च बॉक्स भी देना होगा, ताकि लोग EPIC नंबर के आधार पर अपने नाम को सर्च कर सके।

चूना आयोग वेबसाइट में हर नाम के साथ वह कारण भी बताएगा, जिसकी वजह से नाम काटे गए। 

चूना आयोग को अब यह भी प्रचारित करना होगा कि आधार कार्ड को मान्य दस्तावेज माना जाएगा।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से इतर एक और फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट में हुआ जो ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठते सवाल की पुष्टि ही नहीं करता बल्कि साबित करता है कि ईवीएम से परिणाम बदला जा सकता है 

मामला था हरियाणा के पानीपत जिले के गोहाना लाखु गांव की पंचायत के परिणाम का जिसमें किसी कुलदीप सिंह को मशीनों से वोट की गिनती के बाद विजेता घोषित कर दिया गया था! 

उसके निकटतम प्रतिद्वंदी मोहित कुमार को नवंबर 22 के पंचायत चुनाव में मशीनों पर कुछ शक हुआ कि उससे परिणाम प्रभावित हुआ है!

वह पानीपत के सेशन कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका लगाकर न्याय की मांग लेकर गया विद्वान कोर्ट ने फैसला दिया की सब मशीनों की दोबारा से पुनर्गणना की जाए, और उसके बाद परिणाम घोषित किया जाए! 

लेकिन जीते हुए उम्मीदवार कुलदीप सिंह को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था उसने हरियाणा पंजाब हाई कोर्ट में अपनी याचिका दायर की और वहां से फैसला दिया गया के परिणाम पूर्व वत रखा जाए , और सेशन कोर्ट के फैसले को कैंसिल कर दिया! 

लेकिन निकटतम प्रतिद्वंद्वी अपने आप में बहुत आश्वस्त था वह मामला सुप्रीम कोर्ट में ले गया वहां तीन जजों की पीठ श्री सूर्यकांत जी श्री दीपंकर दत्ता जी और श्री एन कोटेश्वर सिंह जी की पीठ ने फैसला दिया , और सारी ईवीएम मशीन कोर्ट में तलब की गई, सारी मशीनों को सुप्रीम कोर्ट में मंगाया गया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दियाकी अब इसकी पुनर्गणना रजिस्ट्रार कावेरी की निगरानी में होगी और उसकी पूरी तरह वीडियो ग्राफी की जाएगी! 

उसके बाद सभी उम्मीदवारों के प्रतिनिधि वहां बुलाए गए और पुनर गणना  संपन्न कीगई!

आश्चर्य की बात थी तो परिणाम बदल गया निकटतम उम्मीदवार मिलाप को 3767 वोटो की गिनती जो पांच मशीनों के अंदर की गई थी उसमें उसे 1051 वोट प्राप्त हुए और जिस उम्मीदवार को विजयी घोषित किया गया था कुलदीप सिंह उसे सिर्फ 1000 वोट मिले! 27 वोट से हारा हुआ बुधवार 51 वोटो से जीत गया!

सुप्रीम कोर्ट ने नए परिणाम को असली परिणाम बता कर मिलन कुमार को सरपंची दिलवा दी !

 अब विश्लेषकों का सवाल यही है कि यदि चुनाव अधिकारी ने गिनती सही की थी तो फिर परिणाम कैसे बदल गए? 

और अगर यह परिणाम बदल सकते हैं तो फिर ईवीएम हैकिंग से लेकर evm करप्ट होने की बात जो पब्लिक डोमेन में है उसमें कुछ तो सच्चाई है! 

या यह सारी कारास्तानी चुनाव अधिकारियों की थी जो शासन के इशारों पर काम कर कर जनादेश के अपहरण की कोशिश कर रहे थे !

कारण कुछ भी हो लेकिन पहली बार सबूत के साथ सुप्रीम कोर्ट के पटल पर evm संदेह के घेरे में है और ट्रस्ट डिफिसिट से जूझ रही भारतीय चुनाव व्यवस्था पर और चुनाव आयोग पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है कि आखिर वह खेल तो करती ।(साभार)


बुधवार, 13 अगस्त 2025

अमित शाह की करारी हार…

 अमित शाह की करारी हार…


वोट चोरी को लेकर देश भर में मचे बवाल के बीच यदि मोदी के मंत्री किरन रिज़िज़ू का व्यवहार चुनाव आयोग की प्रवक्ता की तरह है तो गृह मंत्री की ऐसी करारी हार इससे पहले कभी नहीं हुई है और ये हार इसलिए मायने रखता है क्योंकि इन दिनों अमित शाह को उत्तराधिकारी के रूप में ज़ोर शोर से प्रमोट किया जा रहा था तो आने वाले दिनों में उपराष्ट्रपति का चुनाव भी है…

बात की शुरुआत प्रवक्ता से चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों के 13 नेताओं को बुलाया था या 30 को, यह जानकारी चुनाव आयोग का प्रवक्ता या जनसंपर्क अधिकारी दे तो समझ में आता है। वैसे वहां गेट पर तैनात सुरक्षा गार्ड भी यह जानकारी दे सकता है।

लेकिन अब चूंकि चुनाव आयोग भी पूरी तरह सरकार का  ही हिस्सा बन चुका है, इसलिए उसकी ओर से हर जानकारी देने या उस पर लगने वाले आरोपों का जवाब देने का काम सरकार के मंत्री और सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता करने लगे हैं..!

अब आ जाइए अमित शाह की हार पर…

कांस्टीट्यूशन क्लब दरअसल देश के चुनिंदा मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट की संस्था होती है जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद सदस्य होते हैं साथ ही कुछ पूर्व लोकसभा सांसद जो पहले सांसद निवास में रहते थे उनके भी वोट शामिल होते हैं! 

इसका पदेन अध्यक्ष लोकसभा अध्यक्ष होते हैं लेकिन सेक्रेटरी और अन्य सभी पदों पर चुनाव की परंपरा है! 

राजीव प्रताप रूडी जो बिहार छपरा से भाजपा के सांसद हैं पिछले 25 वर्षों से इस पद पर कार्यरत है! 

इस बार का चुनाव इस मायने में रोचक था, क्योंकि इस बार अमित शाह एंड पार्टी ने संजीव बालियान को राजीव प्रताप रूडी के खिलाफ खड़ा किया था! 

938 सदस्यों वाले इस क्लब में 788 तो वर्तमान लोकसभा राज्यसभा के सांसद थे तथा शेष वह लोग थे जो पूर्व में पार्लियामेंट के सदस्य थे पर अब सुदूर गांव में रहते हैं मतलब सदस्य नहीं होने की वजह से संसद भवन के परिसर छोड़कर चले गए! 

कल पूरे चुनाव में संजय बालियान को जीताने के लिए अमित शाह कैंप पूरी तरह सक्रिय नजर आया यहां तक किजेपी नड्डा जैसे लोग भी संजीव बालियान की मदद करते हुए देखे गए ! अमित शाह की हल्ला ब्रिगेड के सदस्य झारखंड के संसद सदस्य निशिकांत दुबे ने तो यहां तक घोषणा की की जीतेंगे संजीव बालियान हीं! 

788 सांसदों के इस समूह में 421सांसद एनडीए के हैं 43 सांसद न्यूट्रल है और 324 सांसद इंडिया के हैं! 

अगर पूरी तरह भाजपा समर्थित सांसद अमित शाह मोदी कैंप के कैंडिडेट संजीव बालियान के साथ नजर आते तो उनकी हार नामुमकिन थी!

लेकिन राजीव रूडी 102 वोटो से जीते! कल 680वोट गिरे जिन में 38 वोट डाक मत पत्र के थे , यह भी पूर्व सांसद और राज्यपाल वगैरा हैं जो अधिकांश भाजपा समर्थक थे! 

इंडिया गठबंधन के सभीसदस्य राजीव रुढी को सपोर्ट करते हुए नजर आए यहां तक की सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेता भी राजीव रूडी के लिए फ्लोर मैनेजमेंट करते  दिखे!

क्योंकि संसद अभी चल रही है इसलिए माना जाना चाहिए कि 644 वर्तमान सांसदों ने इसमें वोट किया और बाकी जो 38 डाक मत पत्र से वोट आए इस तरह कुल 682 मतदाताओं ने वोट डालें! 

सीधा सा गणित है 788 वर्तमान सांसदों में 421 भाजपा लीड गठबंधन के हैं और324इंडिया के हैं ,43 सांसद किसी गठबंधन के नहीं है!

 संजू बालियां को मात्र 290 वोट मिले और राजीव प्रताप को 392 वोट मिले इसमें 38 वोट डाक मत पत्र वाले भी शामिल थे यानी 354 वर्तमान सांसदों के वोट थे! एक आश्चर्य की बात और थी कि यह पूर्व 38 सांसद जिन्होंने डाक मत पत्रों से अपने मत भेजें वह सभी राजीव प्रताप रूडी को मिले!

मोदी शाह कैंप के खुले समर्थन के बावजूद इंडिया के सांसदों के सहयोग से राजीव रूडी की यह जीत क्या भाजपा के असंतोष की कहानी कह रहा है? 

आने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में आंकड़ों की यह कारीगरी रोमांच पैदा कर रही है!

वैसे एक नॉरेटिव जाट बनाम राजपूत का भी है और अमित शाह ने संजीव बालियान को खड़ा किया था इसलिए बड़े राजपूत नेता योगी आदित्यनाथ राजनाथ सिंह जैसे नेताओं ने बिहार के राजपूत नेता राजीव प्रताप की जीत में बड़ी भूमिका अदा करी , इंडिया गठबंधन का सहयोग तो अपनी जगह था ही! 

क्या भारतीय जनता पार्टी में अमित शाह के खिलाफ भी एक बड़ा वर्ग असंतोष के मुहाने पर खड़ा है!(साभार)

मंगलवार, 12 अगस्त 2025

ट्रंप का खेल और ठग गिरोह

 ट्रंप का खेल और ठग गिरोह…


देश में वोट चोरी को लेकर मोदी सत्ता जितना परेशान है उससे ज़्यादा परेशानी तो आयोग को sir पर होने लगी है, पूर्व उपराष्ट्रपति धनगड का  ग़ायब होने से लेकर ट्रंप की चालबाज़ी के बीच इस देश के ठग गिरोह की चर्चा भी तो कम नहीं है, सवाल अदानी अंबानी से आगे निकलने लगा है और पेट्रोल में दस बीस फ़ीसदी एथनॉल तक जा पहुँचा तो सबसे ज़्यादा एथनॉल बनाने वाली गडकरी की कंपनी कैसे गुमनामी से काम कर सकती है

आज बात की शुरुआत ठग गिरोह से करें उससे पहले बता देते हैं कि sir को  को लेकर जो बहस  न्यायलय में चल रही थी को लेकर दिनभर मीडिया सिर्फ यह चलता रहा सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना और स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन जारी रखने की बात कही! 

आधार कार्ड पर जो बहस अभिषेक मनु सिंघवी ने की  और जिस तरह इस तर्क का खंडन किया उस प्रतिवाद की कोई ध्वनि मिडिया में नहीं थी!

कपिल  सिब्बल ने तो पहले ही साफ कर दिया था इंटेंसिव रिवीजन के विरोध में नहीं है हमारा मुख्य एजेंडा इस प्रक्रिया को कानून के आधार पर और अधिक  से अधिक लोगों को  वोट का अधिकार दिया जाए इससे संबंधित है!

हम चाहते हैं चुनाव आयोग जिस तरह से विषय वस्तु छुपाने की कोशिश कर रहा है उसकी जगह उसे पारदर्शी तरीका अपनाना चाहिए जिस प्रक्रिया सरल सुगम और सुलभ हो!

*उत्तर प्रदेश के 5000 लोगों का नाम बिहार में एक विधानसभा क्षेत्र में*

आज सोशल मीडिया पर एक स्वायत्त संस्था कलेक्टिव रिफॉर्म्स की की रिपोर्ट भी बेहद चर्चा में रही जिसमें उन्होंने एक स्ट्रिंग ऑपरेशन कर कर यह बताने की कोशिश की है की बिहार की एक विधानसभा क्षेत्र वाल्मीकि विधानसभा क्षेत्र में 5000 उत्तर प्रदेश के वोटर बिहार में वोट देने के लिए शामिल किए गए हैं जिनके दो-दो एपिक नंबर हैं और वह उत्तर प्रदेश के भी वोटर हैं! 

इसे लेकर भी पूरे बिहार में सनसनी है! 


आज याचिका करता ओ के वकीलों की बहससुनी गई  कल चुनाव आयोग का पक्ष सुना जाएगा!

तब ट्रंप के पल पल बदलते बयान के बीच पाकिस्तान का मदद करने वाले दुनिया के सबसे अविस्वशनीय चीन के साथ मोदी सत्ता का प्रेम क्या देश को नई मुसीबत की तरफ़ खिच रहा है…

ऐसे में राहुल गांधी आखि़र क्यों कहते हैं कि AA ( अंबानी, अदानी) के कारण नरेंद्र मोदी अमेरिका के प्रेसिडेंट ट्रंप के सामने डरे ,सहमें एवं झुके रहते हैं...?

दरअसल इसके पीछे एक राज है, 

याद कीजिए ट्रंप ने कहा है कि भारत अपना तेल रूस से सस्ते दाम में खरीदकर उसे अन्तर राष्ट्रीय बाजार में बेचकर बड़ा मुनाफा कमा रहा है, 

अब इसे समझना जरूरी है, यदि भारत सरकार इस तेल को रूस से सस्ते दाम में खरीदती तो भारत की जनता को लाभ मिलता,

पर ऐसा नहीं हो रहा है।

 क्योंकि ये तेल रूस से अंबानी की कंपनी रिलायंस खरीदती है और फिर उसे 30% जैसे भारी भरकम मुनाफा लेकर अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में बेचती है।

अब इस कहानी में दूसरा ट्विस्ट है, 

वॉल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका का न्याय विभाग अदानी समूह की प्रमुख इकाई अदानी एंटरप्राइज़ेज़ को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई एलपीजी टैंकरों की गतिविधियों की जांच कर रहा है ।

अमेरिका में डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस अदानी के ऊपर रिश्वत एवं भ्रष्टाचार के लगे अन्य आरोपों की भी जांच कर रहा है। साथ ही हिंडनवर्ग का भी एक केस है।

एक तरफ अमेरिका ईरान और रूस से तेल आयात पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है, किन्तु अंबानी की रिलायंस कंपनी का ईरान और रूस से तेल आयात अदानी के गुजरात स्थित मुंद्रा पोर्ट से ही किया जा रहा है।

इसलिए रूस के कारण भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने के बाद गौतम अदानी अपनी कंपनी अडानी पोर्ट्स के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन की जिम्मेदारी से इस्तीफा दे दिया है. अब वे सिर्फ नॉन-एग्जीक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर कंपनी से जुड़े रहेंगे, यानी कंपनी की रोजमर्रा की रणनीति या ऑपरेशन में उनका दखल नहीं रहेगा।

यह उनका सेफ्टी मेजर है ताकि अमेरिकी सरकार द्वारा किसी कार्यवाही, प्रतिबन्ध, सजा या जेल भेजने की स्थिति में बिजनेस  प्रभावित ना हो। कुछ बचने बचाने की गुंजाइश हो।

बिटवीन द लाइंस, खबरों को मानें तो अंबानी के रिलायंस कंपनी द्वारा रूस से आयात तेल मुनाफे में कुछ प्रतिशत रंगा बिल्ला की भागीदारी है।

इस प्रकार अदानी पर अमेरिका में जांच , एवं इन ठग गिरोहों को ट्रंप अच्छी तरह जान चुका है, जिससे मोदी चुप एवं डरे सहमें रहते हैं।(साभार)



सोमवार, 11 अगस्त 2025

क्या हिट होगा-वोट चोरी

 क्या हिट होगा-वोट चोरी…


राहुल गांधी ने फ़िल्म रिलीज़ कर दी है, पहले हफ़्ते में जिस तरह से यह फ़िल्म ने हलचल मचाई है उससे सत्ता की नींद उड़ चुकी है, चुनाव आयोग बेशर्मी पर उतर आया है ऐसे में अब दूसरे राज्यों से वोट चोरी की नई नई ख़बर क्या मोदी सत्ता को नई मुसीबत की तरफ़ नहीं ले जा रहा है, सोचिए और इसे ऐसे समझे…

जब विचारधाराओं में द्वंद हो तब बीच का कोई रास्ता नहीं होता, नहीं हो सकता.और होना भी नहीं चाहिए।लोकतंत्र का रास्ता लंबा और वृहद है. संघर्ष के बिना इसकी ज़मीन तैयार नहीं हो सकती. पिछले दशक में हमने जितने मानव अधिकारों की और एक व्यक्ति के निजी अधिकारों की हत्या हमने देखी हैं उससे हमारा वर्तमान और भविष्य ऐसे रास्ते पर आकर खड़ा हो गया है कि चकाचौंध भरी रोशनी में हाशिए की सड़क नज़र नहीं आती. नतीजतन इसे डेमोक्रेसी की कमजोरी के रूप में भी देखा जा सकता है. 

जब आपका वोट ही सुरक्षित नहीं है तो आप किस अधिकार और भविष्य की बात करेंगे?

वोट चोरी विचार और भरोसे की चोरी है.

इसके ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद हो.

मामला तब शुरू हुआ जब ज़मीन में दिख रहा ग़ुस्सा और चुनाव परिणाम अलग अलग दिखने लगा,  विपक्ष को जब ये महसूस हुआ कि चुनाव में कुछ झोल हो रहा है तो उन्होंने चुनाव आयोग से कुछ दस्तावेज मुहैया करवाने का अनुरोध किया।

उधर चुनाव आयोग जिसे कुछ लोग चूना आयोग तो कुछ लोग केंचुआ भी कहते हुए नजर आते हैं, ने विपक्ष को ट्रक भर के कागज सौंप दिए। 

लगा कि ये 7 फिट ऊंचा कागजों का ढेर देखकर शायद विपक्ष इनका विश्लेषण करने का इरादा या तो छोड़ देगा या फिर इनका विश्लेषण करते करते शायद विपक्ष बुढा ही हो जाए। 

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।लेकिन हुआ वैसा जो चुनाव आयोग ने सोचा नहीं था। विपक्ष ने इस दौरान कुछ सूचनाएँ आरटीआई लगाकर हासिल की तो बाकी सूचनाएँ अपनी अलग अलग टीमों के जरिये हासिल की।इसे देख चुनाव  आयोग सकते में आ गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि विपक्ष इतनी जल्दी ऐसा डेटा (तथ्य) ले आएगा। 

जब विपक्ष ने उन्हीं कागजों को दिखाया जो चुनाव आयोग ने दिए थे। उन्हीं कागजों में खोज निकाला कि कोई आदित्य श्री वास्तव चार राज्यों में वोट डाल रहा है तो कहीं एक मकान में 80 लोग रह रहे हैं, तो कहीं 1 लाख से अधिक फर्जी वोट पाए गए, तो कहीं ऐसे मकान और एड्रेस थे जो वास्तव में कहीं थे ही नहीं। 

विपक्ष ने मांग की कि उन्हें डिजिटल डेटा दिया जाए, मगर चुनाव आयोग जानता था कि ऐसा करने पर पोल खुल जाएगी। लिहाजा डिजिटल डेटा देने के बजाय जो उपलब्ध था वो भी वेबसाइट से हटा दिया गया। और राहुल गाँधी को ही कह दिया कि आप शपथ पत्र दीजिये। 

शपथ पत्र उन कागजों की गड़बड़ी के लिए राहुल गाँधी से मांगा जा रहा था, जो कागज असल में तो चुनाव आयोग के ही थे। कमाल का खेल रचा जा रहा था।

और शपथ पत्र भी वो मांग रहा था जिसके कागजों में बिहार में कुत्ता सिंह ( डॉगी सिंह), कौआ सिंह और यहाँ तक की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक नाम लिस्ट में जोड़ दिए। 

उधर बिहार में पुनरीक्षण के नाम पर 65 लाख लोगों के मत का अधिकार ही छीन लिया जो उनको संविधान से प्राप्त था। 

जब विपक्ष ने इसका कारण पूछा तो साफ कह दिया कि हम कारण नहीं बताएंगे। नाम किस किस के काटे ये भी नहीं बताएंगे। यानि कि खुद को खुद ही के जाल में फसाये जा रहे थे माननीय शायरी वाले आयोग जी। 

संविधान ने भारत में भारतीय नागरिकों को व्यस्क मताधिकार का अधिकार दिया है। जिसकी उम्र 18 वर्ष या अधिक है उसे बिना जाति, धर्म, लिंग का भेद किए, चुनाव का अधिकार होगा। लेकिन वही अधिकार अब चोरी होने लगे तो लोकतंत्र और संविधान के क्या मायने रह जाएंगे। 

बात राहुल गाँधी ने उठाई है लेकिन चिंतन और मनन पूरे देश को करना चाहिए कि क्या आप अपने वोट के अधिकार को चोरी होते हुए देखना चाहोगे?

हालांकि इस गंभीर मुद्दे पर मीडिया को सरकार से सफाई मांगनी चाहिए थी, लेकिन मीडिया का कहना है कि वे सरकार से सवाल करने का कार्य 2014 में छोड़ चुके हैं अब एक बार छोड़ा गया कार्य वापस पकड़ना अच्छा नहीं लगता। फिर भी आप जिद्द करते हैं तो हम जब सरकार बदलेगी तब ये कार्य दुबारा शुरू कर देंगे। तो फिलहाल चौथे पाए से इससे अधिक उम्मीद करना उम्मीद की ही तौहीन करने जैसा होगा। 


सोचना ये है कि-

लोकतंत्र में जनता सरकार को चुनती हैं अपने वोट के जरिये तो क्या वो वोट लुट जाने दोगे? 

सवालों के जवाब जिनको देने चाहिए वो विपक्ष को हिरासत में ले रहा है बाकी सब ठीक.... 

(साभार)


रविवार, 10 अगस्त 2025

अब तो हर राज्य से आई खबर वोट चोरी

 अब तो हर राज्य से आई खबर वोट चोरी …


राहुल गांधी ने भी नहीं सोचा होगा कि उनके वोट चोरी को लेकर दिये सबूत के बाद हर राज्य से वोट चोरी की खबर ऐसे आने लगेगी, लोग ख़ुद चोरी की खबर सोशल मीडिया में वायरल कर रहे है…

किस किस राज्य से खबर आई और क्या क्या खुलासा हो रहा है वह बताये उससे पहले ये जान लीजिए कि मिनिमलिस्ट स्टाइल में एक पेंचीदा मुद्दे पर ऐसी बेबाक और कॉन्फिडेंट प्रेस कॉन्फ्रेंस सिर्फ़ राहुल गांधी ही कर सकते थे, इसके पीछे का होम वर्क, समझ, खोज और उसका प्रस्तुतीकरण सब एक बहुत ही गंभीर नेता की पहचान है।

मुझे नहीं याद पड़ता कि इससे पहले किसी भी बड़े नेता को इस तरह से बात करते देखा हो, एक टेक्निकल मुद्दे पर स्वयं प्रेजेंटेशन देते हुए।

ख़ैर तारीफ़ अपनी जगह, सबसे अच्छा हिस्सा इस धमाकेदार प्रेस कांफ्रेंस का मुझे ये लगा, कि राहुल इलेक्शन कमीशन से शिकायत, अपील या किसी मांग की मुद्रा और भावना से नहीं आए थे, न ही उन्होंने ऐसी किसी मांग पर जोर दिया। 

उनको अच्छे से पता है कि वो संस्थानों में किस स्तर के गिरोह से उलझ रहे हैं, उन गिरोह के सदस्यों के प्रति सिर्फ़ हिकारत रखी जा सकती है। 

उन्हें पता है कि संवाद सिर्फ़ युवाओं से करना है, जिन्हें अपना भविष्य देखना है।

अब आते है वोट चोरी पर…

बिहार में 3 लाख घर ऐसे है जिनके घर का नंबर "शून्य"है!

बिहार में पहली बार वोट डालने के लिए मुर्दे कब्रों से उठकर आ गए है जिनकी उम्र 124 साल,120 साल व 119 साल तक है!

मध्यप्रदेश में 1696 घर ऐसे है जहां 100-100 वोटर रहते है!

बैंगलोर से लेकर बंबई तक यही कहानी है!

आधार बॉयोमेट्रिक अर्थात फिंगरप्रिंट व रेटिना की पहचान के साथ जुड़ा है जो दूसरे इंसान से मैच कर ही नहीं सकता।

साफ है वोटर को आधारकार्ड से लिंक कर दो एक भी फर्जी वोट नहीं पड़ सकता है।किया उल्टा जा रहा है कि आधार मान्य नहीं है।

इतनी खुली नंगई पर भी जनता चुप है।

क्या जानबूझकर चुनाव आयोग जैसी संस्था को खत्म करने का कार्य किया जा रहा है ताकि न्यू वर्ल्ड आर्डर के तहत धर्माचार्यों के साथ ही राजा की नियुक्ति रोम से की जा सके?

जनता अब भी सड़कों पर नहीं उतरी तो देश को जल्द ही बेच दिया जाएगा!(साभार)